भूमिका — "गुल–दास्तां"कुछ कहानियाँ धूप में सूख चुके फूलों की तरह होती हैं—मुरझाई नहीं होतीं, बस वक़्त के पन्नों ...
किशोर अहले सुबह नेहरू गार्डन की ओर चल पड़ा। वह ज्यादा बातचीत पसंद नहीं करता, यही वजह है कि ...
भूमिका(‘धुंआ’ – एक प्रतीकात्मक कथा)कभी-कभी सबसे गहरी बातें सड़कों के शोर में नहीं, बल्कि किसी टपरी की चुप चाय ...
तेज़ तर्रार महाराजा एक्सप्रेस दूर से आ रही थी। पूरे स्टेशन पर सबकी नजर उसी की तरफ अटक गई। ...
"ज्वार या भाटा"भूमिकाकहानी ज्वार या भाटा हमारे उन वयोवृद्ध योद्धाओं की है जो अपने जीवन में अथाह अनुभव लेके ...
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(Present day )एक सूने से हॉल में दो कमरे हैं । उनके सामने की तरफ दीवार पर घड़ी लगी ...
दो महीने बीत चुके थे राकेश अब फिर से बेरोजगार हो चुका था। सब्जी के व्यापार में घाटा लगने ...
सुबह सुबह रसोई से पराठों की खुशबू आ रही है और दीवाकर जी मंदिर में गायत्री मंत्र का पाठ ...
राकेश ठेला सरकाते सरकाते मंदिर के पीछे वाले मैदान में आ गया। अभी सवेरे के साढ़े आठ ही बजे ...