गाँव की चौपाल पर धूल बैठी ही थी कि अचानक लोहे की खड़खड़ाहट फिर से गूँज उठी।नवगढ़ की सेना ...
चंद्रवा की सुबह उस दिन कुछ ज़्यादा ही शांत थी।हवा में धान की हल्की गंध तैर रही थी, तालाब ...
धूप ढल चुकी थी। खेतों की मेड़ों पर धुआँ तैर रहा था — कहीं धान की भूसी जल रही ...
रात की पहली पहर। तारे जैसे जले हुए चावल हों—छोटे, सफ़ेद, नेक। हवा में धान के कटने की गंध। ...
धूप के पहले धागे ने जब खपरैल की छतों पर चुपके से अपनी उँगलियाँ रखीं, तो चंद्रवा गाँव हल्के-हल्के ...
शाम ढल चुकी थी। मेले की रौनक अब धीरे-धीरे बुझ रही थी। ढोल-नगाड़ों की आवाज़ें थम गई थीं, पर ...
यह वाक्य सुबह-सुबह ही चंद्रवा गाँव की गलियों में गूँजने लगा था।बच्चों की आँखें नींद से आधी खुली थीं, ...
मेले से एक दिन पहले, पूरा दिन गांव व्यस्त रहा। औरतें पकवान बनाती रहीं।बच्चे उत्साह से उछलते-कूदते रहे। बुजुर्ग ...
गाँव की चौपाल पर उस सुबह एक अजीब-सी खामोशी थी। पिछली बैठक की हलचल और बहस अब भी हवा ...
साँझ उतर रही थी। धूप का रंग हल्का सुनहरा हो चुका था, जैसे किसी ने आकाश पर पुराने पीतल ...