22.भक्ति के ग्यारह तरीकेत्रिसत्यस्य भक्तिरेव गरियसी भक्तिरेव गरियसी ॥८१॥अर्थ : तीनों सत्यों (कायिक, वाचिक, मानसिक) में भक्ति ही श्रेष्ठ ...
21.भक्ति में क्या करें, क्या न करेंवादौ नावलम्ब्यः ||७४||बाहुल्यावकाशादनियतत्वाच्च ॥७५||अर्थ : वाद-विवाद का अवलंब नहीं लेना चाहिए ।।७४।।क्योंकि बाहुल्यता ...
20.एकांत भक्त की महिमाकंठावरोधरोमांचाश्रुभिः परस्परं तपमानाः पावयंति कुलानि पृथिवीं च ||६८||अर्थ : एकांत भक्त कण्ठावरोध, रोमांच तथा अश्रुपूर्ण नेत्रों ...
18.भक्ति की रक्षास्त्रीधननास्तिकवैरिचरित्रं न श्रवणीयम् ||६३||अर्थ : वासना, धन, नास्तिक तथा वैरी का श्रवण नहीं करना चाहिए ।।६३।।भक्ति कोई ...
17.भक्ति की युक्ति-कर्मयोगलोकहानी चिंता न कार्या निवेदितात्मलोकवेदत्वात् ॥६१||अर्थ : भक्त लोकहानि की चिंता नहीं करता। वह लौकिक तथा वैदिक, ...
16.भक्ति की विशेषताअन्यकमात् कौलभ्यं भक्तौ ॥५८॥अर्थ : अन्य की अपेक्षा भक्ति सुलभ है ।।५८।।परम भक्त नारदमुनि ही नहीं अन्य ...
15.भक्ति के भेदगौणी विधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा ॥५६॥उत्तरस्मादुत्तरस्मात्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति ॥ ५७।।अर्थ : गौणी भक्ति गुण भेद से तथा आर्तादि भेद ...
14.प्रेम का स्वरूप और पात्रताअनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम् ||५१||मुकास्वादनवत्॥५२||अर्थ : प्रेम का वह स्वरूप अवर्णनीय, अकल्पनीय, अतुलनीय है।।५१।। गूँगे के स्वाद ...
13.कर्म फल का त्यागयः कर्मफलं त्यजति, कर्माणि संन्यस्यति, ततो निद्वंद्वो भवति॥४८॥अर्थ : जो कर्म फल का त्याग करता है, ...
12.विकारों से बचावकस्तरति कस्तरति मयाम् ? यः संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते, निर्ममो भवति॥४६॥अर्थ : कौन तरता है, कौन तरता ...