कहानी "इश्क़ इसको कहूँ तो" का पहला भाग मलिक साहब और उनके सहायक रम्ता के बारे में है। मलिक साहब एक दयालु और समझदार व्यक्ति हैं, जो बच्चों को पढ़ाते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है। एक दिन, ज़ाफ़रान की खुशबू से भरे वातावरण में, मलिक साहब ने रम्ता को शंकराचार्य मंदिर चलने के लिए कहा। उन्होंने बच्चों के लिए छुट्टी की तख्ती लगाई और दोनों निकल पड़े। आमतौर पर वे आराम से चलते थे, लेकिन उस दिन मलिक साहब ने तेजी से चलने का फैसला किया और जल्दी में मंदिर पहुँच गए। वहां पहुँचकर, मलिक साहब मंदिर के प्रांगण में टहलने लगे, जबकि रम्ता ने उन्हें आवाज़ दी, लेकिन मलिक साहब उनकी आवाज़ पर ध्यान नहीं दे रहे थे। यह स्थिति रम्ता के लिए अजीब थी, क्योंकि मलिक साहब आमतौर पर शांत और सोचने वाले होते हैं। कहानी मलिक साहब की बेक़रारी और रम्ता की चिंता के इर्द-गिर्द घूमती है।
इश्क़ इसको कहूँ तो
Deepak Shah द्वारा हिंदी लघुकथा
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विवरण
आज के इस दौर में हम इंसानी जज़्बातों का अपने निजी तौर पे जो तर्जुमा, जो अनुवाद करते हैं वो किस हद तक सही है ये सवाल मैं एक अरसे से खुद से पूछता रहा हूँ। आख़िर ये सवाल सबके सामने उठाने का मेरे जी में ख़याल आया। जो रमता की कहानियाँ बनकर हमारे सामने उभरे। इश्क़ इसको कहूँ तो उसी कहानी संग्रह रमता का एक हिस्सा है।
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