इस कहानी में एक तूफान का वर्णन है जो बंगाल की खाड़ी में उठता है। हिमालय की बर्फ पिघलने के कारण काले बादल तराई के जंगलों पर मँडराने लगते हैं। चरवाहे और पशु नदी के किनारे पानी पीते हैं, लेकिन उन्हें गेरुआ पानी (बाढ़ का पानी) का एहसास होता है, जिससे वे आतंकित हो जाते हैं। जवान चरवाहे इस बात को मजाक में लेते हैं, लेकिन जानवरों की बेचैनी बढ़ती जाती है। खेतों में हरी फसलें लहलहा रही हैं और गाँवों में खुशियों का माहौल है, लेकिन किसानों के मन में अतीत की यादें और विरह के गीत गूंजते हैं। कहानी के अंत में, खेतों की मुसहरनी लड़कियाँ आकाश में उड़ती हैं, और उनके हंसने से बिजली चमक उठती है। यह सब अंधकार में होता है, जब सूरज डूब चुका होता है। यह कहानी प्रकृति के अद्भुत रूप और मानव मन की जटिलताओं को दर्शाती है।
पुरानी कहानी
Phanishwar Nath Renu
द्वारा
हिंदी लघुकथा
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विवरण
पुरानी कहानी: नया पाठ फणीश्वरनाथ रेणु बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन - तूफान - उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु - गाय,बैल-भैंस- नदी में पानी पीते समय कुछ सूँघ कर, आतंकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूँछ उठा कर आर्तनाद करती हुई भागी। बूढ़े चरवाहे ने नदी के जल को गौर से देखा। चुल्लू में लिया - कनकन ठंडा! सूँघा - सचमुच, गेरुआ पानी! गेरुआ पानी अर्थात पहाड़ का पानी - बाढ़ का पानी? जवान चरवाहों ने
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