The text appears to be a collection of abstract phrases and sentences, likely from a poem or a piece of artistic writing. It includes themes of struggle, exploration, and emotions, expressed in a somewhat cryptic and fragmented manner. The language used is rich in metaphor and symbolism, reflecting on experiences and perceptions. Key points include: - The text conveys a sense of searching and questioning, with references to internal and external conflicts. - There are mentions of various states of being, possibly reflecting on personal growth or societal issues. - The overall tone is introspective, inviting the reader to delve deeper into the meanings behind the words. Due to the abstract nature of the content, the summary captures the essence without providing a detailed narrative.
प्रार्थनारत बत्तखें
Bharatiya Jnanpith
द्वारा
हिंदी कविता
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विवरण
किसी भी दौर की समकालीनता एकायामी नहीं होती. उसके पाश्र्व में कई राग-रंग, धुँधले पड़ चुके कई ह र्फ झिलमिलाते रहते हैं। युवा कवि तिथि दानी ढोबले के संग्रह प्रार्थनारत बत्तखेंÓ को पढ़ते हुए हम इसी तरह की बहुआयामी समकालीनता से बावस्ता होते हैं। ऐसे समय में जब डर ही चेतना का केन्द्र होने लगे और डरे हुए लोगÓ ही समाज की धुरी, इस डर को निकाल देना आसान नहीं होता, परन्तु एक युवा कवि ताज़गी और अनुकूलन से मुक्त आवाज़ से इस डर को चुनौती देता है। उसका यह कहना प्रेम भरी नज़रें कभी विस्मृत नहीं करतीं सौन्दर्यबोधÓ हमारे भीतर उत्साह और प्रेम का संचार करता है। इधर की हिन्दी कविता विशेषकर युवा कविता के सन्दर्भ में ये शिकायत की जाती है कि उसमें मनुष्य और प्रकृति का आदिम राग सुनाई नहीं देता। तिथि की कविताओं में प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्धों को वर्तमान के धरातल पर पहचानने की कोशिश नज़र आती है। प्रकृति और मनुष्य के आदिम राग को गाते हुए वह अपने समय और समाज को नहीं भूलती। वह अपने भीतर यह उम्मीदÓ बचाए रखती हैं कि स्त्रियाँ जुगनू बन जाएँÓ। उम्मीद का यह उत्कर्ष हमें सुकून से भर देता है। ये कविताएँ प्रेम और सौन्दर्य को अलगाती नहीं। वे दोनों के बीच मौजूद बारीक से बारीक भेद को भी मिटा देना चाहती है। दुनिया के शोर, भागदौड़, छीना झपटी के बीच प्रार्थनारत बत्तखेंÓ का रूपक हमें हर तरह की नृशंसता और दमन के प्रति प्रेम और सौन्दर्य के वैकल्पिक रास्ते की ओर मोड़ देता है। एक ऐसे रास्ते पर जहाँ लोग अपने भीतर और बाहर के दर्द को विस्मृत कर प्रार्थनारत बत्तखोंÓ के संगीत में खो जाते हैं। तिथि दानी की कविताएँ रूमानियत और कल्पना की एक ऐसी भाव-भूमि पर खड़ी नज़र आती हैं जो प्रति-यथार्थ का सौन्दर्यबोध हमारे भीतर जगाती हैं। इसी अलहदा जमीन पर खड़ी होकर वे कहती हैं मैं शिद््दत से ढूँढ रही हूँ रोटी के जैसी गोलाईÓ। इन कविताओं से गुजरना अपने भीतर के असुन्दर से संघर्ष करना है। ये प्रार्थनाएँ हमारे भीतर सुन्दर दुनिया का विवेक जगाती हैं। —अच्युतानन्द मिश्र
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