इस कहानी में एक बच्चा एक अँगरेज़ी स्कूल में पढ़ता है, जहाँ शिक्षकों की अँगरेज़ी खराब है, लेकिन माता-पिता गर्व महसूस करते हैं कि उनका बच्चा 'मम्मी' और 'डैड' बोल रहा है। बच्चा सरकारी स्कूल को नकारता है और सोचता है कि वहाँ सिर्फ गरीब बच्चे पढ़ते हैं। पिता, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, समाज में प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए अपने बच्चे को अँगरेज़ी स्कूल में दाखिल कराते हैं, हालांकि इससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। पिता ने कई कटौतियाँ करनी शुरू कीं और धीरे-धीरे घूसखोरी की ओर बढ़ने लगते हैं। बच्चा तेजी से अँगरेज़ी सीखता है और अपने माता-पिता को खुश करने के लिए धन्यवाद बोलता है। पिता अपने बच्चे को मेहमानों के सामने दिखाते हैं और उसकी अँगरेज़ी गालियाँ सुनकर गर्व महसूस करते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसकी उपभोक्तावादी इच्छाएँ बढ़ती हैं। वह महंगी बाइक और कार की मांग करता है। पिता सीमित आय के बावजूद सामाजिक प्रतिष्ठा के बोझ तले दबे रहते हैं। अंततः, बच्चा उपभोक्तावाद की ओर झुकता है और अजीबोगरीब चीजों की मांग करने लगता है, जिससे पिता को परेशानी होती है। कहानी उपभोक्तावाद, सामाजिक दबाव, और आर्थिक स्थिति के प्रभावों को दर्शाती है।
अँगरेज़ी स्कूल और पिताश्री
Girish Pankaj द्वारा हिंदी लघुकथा
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व्यंग्य रचना
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