कविता "फिर कोई महाकाव्य" में आनंद सहोदर ने मानवता के संघर्ष और सामाजिक विकारों को चित्रित किया है। हिमालय की ऊँचाई से लेकर ज्ञान की गंगा तक, कवि कल्पना और वास्तविकता के बीच के अंतर्संबंध को दर्शाता है। वह यह बताता है कि महाकाव्य की कहानी कहीं से भी शुरू हो सकती है और यह निरंतर चलती रहती है। कवि ने राम और रावण की पारंपरिक भूमिकाओं को नया रूप दिया है, जहाँ राम मानव हैं और रावण की दुष्कर्मों की कोई जगह नहीं है। वह समाज में व्याप्त विकारों, जैसे कि चोरी, कर्तव्य के प्रति लापरवाही, और आदर्शों के टूटने की बात करता है। कविता में यह भावना है कि अगर रावण और सीता का अपहरण नहीं होता, तो मानवता को एक नई दिशा मिलेगी। लेकिन यह भी कहा गया है कि संघर्ष अनिवार्य है, जो न केवल तलवारों से बल्कि अन्य रूपों में भी होगा। अंत में, मानवता की स्थिति और उसके भविष्य की अनिश्चितता को दर्शाते हुए, यह दर्शाया गया है कि झूठ और विकारों का सामना करना पड़ेगा। यह कविता एक गहरी सामाजिक टिप्पणी है, जो मानवता के कल्याण के लिए जागरूकता और संघर्ष की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
आधुनिक भारत की कविताएँ - फिर कोई महाकाव्य
Anand Gurjar
द्वारा
हिंदी कविता
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विवरण
फिर कोई महाकाव्य - आनन्द सहोदर हिमालय से ऊंचेविशाल हृदय वालेदहकते अंगारों के समानआखों पर अनोखी शीतलतावर्फ से ढके हुए कंधेआधे पैरों को जमीन में गाढ़े हुएहे कल्पना पुरुष तुम कब से खड़े हो। तुम्हारे भाल के तल मेंवही हुई ज्ञान गंगा काएक भाग पृथ्वी पर अवतीर्ण होगा युग फिर गूंज उठेगा किसी महाकाव्य की वाणी से। हां हां सुनाई दे रहा हैहर स्वर हर एक कम्पनपर उसका आदि अन्त नहीं कहाँ से होगी कथा प्रारम्भ बाल्मीकि की रामायण से जो किसी भविष्य की तरह लिखी जा चुकी है। यह कथा है कथा कहीं से भी प्रारम्भ हो सकती है।
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