यह कहानी शैलेंद्र और शामली की है, जो अपने बेटे सार्थक के लिए जीवन बिताते हैं। शैलेंद्र अक्सर काम के कारण विदेश जाते थे, जिससे शामली ने अकेले ही सार्थक का पालन-पोषण किया। शैलेंद्र की रिटायरमेंट के बाद, शामली खुश थी कि अब परिवार साथ रहेगा। सार्थक के व्यवसाय में सफल होने के बाद, उसने शादी कर ली और पोते का भी आगमन हुआ। हालांकि, सार्थक अपने माता-पिता के खर्चों को लेकर चिंतित था। एक दिन उसने अपनी माँ को बताया कि उसके व्यवसाय में बड़ा नुकसान हुआ है और उसे कर्ज चुकाने के लिए घर बेचना पड़ेगा। अपनी खुशी के लिए, शामली और शैलेंद्र ने घर बेच दिया और किराए के मकान में रहने लगे। कुछ समय बाद, सार्थक ने अपने माता-पिता से कहा कि वे वृद्धाश्रम चले जाएं ताकि उसका खर्च कम हो सके। शैलेंद्र ने इस पर कहा कि वे कभी वापस नहीं आएंगे। इसके बाद, वे एक छोटे से कमरे में रहने लगे और शैलेंद्र ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। जब शामली को डेंगू हो गया, तो शैलेंद्र के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। वह दिनभर उसकी देखभाल करता रहा, लेकिन उसके मन में विचार चल रहे थे कि वह क्या करे। कहानी एक भावनात्मक संघर्ष को दर्शाती है, जिसमें परिवार के सदस्यों के बीच संबंध और त्याग की भावना दिखाई देती है।
स्वाभिमान - लघुकथा - 21
Jahnavi Suman
द्वारा
हिंदी लघुकथा
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विवरण
शामली के पति शैलेंद्र काम के सिलसिले में अक्सर विदेश जाया करते थे, इसलिए उसने अपने बेटे सार्थक का पालन पोषण एक तरह से अकेले ही किया था। शलेंद्र की रिटायरमेंट के बाद वह खुश थी, कि अब परिवार एक साथ रहेगा।
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