यह कहानी पत्रकारिता और संपादक की भूमिका के बदलाव पर केंद्रित है। प्रसाद जी और सिन्हा जी के बीच बातचीत में यह दर्शाया गया है कि कैसे संपादक का पद अब केवल एक औपचारिकता बन गया है। मालिक के व्यवसायिक हितों के अनुसार समाचारों का प्रबंधन किया जा रहा है, जिससे संपादक की वास्तविक भूमिका समाप्त होती जा रही है। वे चर्चा करते हैं कि पहले पत्रकारिता में स्वतंत्रता थी, लेकिन अब संपादक केवल मालिक की इच्छाओं का पालन करने वाला एक न्यूज मैनेजर बन गया है। कहानी में एक उदाहरण दिया गया है जब कोयला व्यापारियों के खिलाफ एक अभियान चल रहा था, लेकिन अचानक इसे रोक दिया गया और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया। यह दर्शाता है कि समाचारों का नियंत्रण अब बाहरी दबावों के अधीन है। अंततः, यह संवाद यह बताता है कि पत्रकारिता का असली उद्देश्य और संपादक की भूमिका अब बाजार के हितों के लिए दबी हुई है।
काश आप कमीने होते ! - 4
uma (umanath lal das) द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी
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विवरण
जले-भुने प्रसाद जी एक दिन सिन्हा जी से कहते हैं – ‘जानते हैं बास, अब बहुत जल्द हम सभी संपादक शब्द सुनने को तरस जाएंगे। जब विज्ञापन संपादक, प्रसार संपादक, व्यवसाय संपादक जैसे पद चल गए हैं तो संपादक शब्द की अर्थवत्ता कहां रही ! फिर वैसे पद को रखने का क्या मतलब जिसका कोई अर्थ न हो? अब आप ही कहिए सही, मालिक अखबार के जरिए अपने व्यवसाय (हित) का संपादन करता हुआ बिजनेस एडीटर बना हुआ है और संपादक नाम का जीव अब खबरों को कारपोरेट इंटरेस्ट के हिसाब से मैनेज कर रहा है यानी संपादक मालिक के हित के हिसाब से खबरों का प्रबंधक यानी न्यूज मैनेजर बन बैठा है।
पाठकों की आश्वस्ति के लिए मैं यह हलफनामा नहीं दे सकता कि कहानी के पात्र, घटनाक्रम, स्थान आदि काल्पनिक हैं। किसी भी तरह के मेल को मैं स्थितियों का संयो...
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