कहानी "बराबाद... नहीं आबाद" में सुनीता नाम की एक मेहनती महिला की जीवनशैली और उसके संघर्षों का चित्रण किया गया है। सुनीता, जो लगभग पचास वर्ष की है, अपने घरों में काम करती है और अपने से कम उम्र की मालकिनों को "भाभी" कहकर संबोधित करती है। एक सुबह जब उसे अपने गांव गन्नौर से दो प्रेमियों के ट्रेन से कटकर जान देने की खबर सुनाई देती है, तो वह दुखी हो जाती है। सुनीता का दिन काम में व्यस्त रहता है, और उसे डिम्पल नाम की एक मालकिन के घर समय पर पहुंचना होता है। वह अपने काम के प्रति ईमानदार है, लेकिन कभी-कभी गुस्से में डिम्पल को "मैडम" कहकर बुलाती है। सुनीता की बातचीत में एक खास तरीका है, जिसमें वह अपने श्रोताओं को शामिल करती है और अपनी बातें साझा करती है। कहानी में उसके व्यक्तित्व के कई पहलुओं को उजागर किया गया है; वह मेहनती, तटस्थ और सहानुभूतिशील है। सुनीता की दरियादिली की कोई सीमा नहीं है, और वह दूसरों के दुख-सुख में शामिल होने का प्रयास करती है। उसका संबंध डिम्पल के साथ जटिल है - एक ओर वह डिम्पल से नाखुश रहती है, दूसरी ओर उसकी परेशानियों में सहानुभूति भी रखती है। कहानी अंततः इस बात पर जोर देती है कि सुनीता का जीवन उसके काम और रिश्तों के बीच संतुलन बनाने के संघर्ष से भरा है, और उसकी संवेदनाएं उसे एक विशेष पहचान देती हैं।
‘बराबाद’ .... नहीं आबाद
Pragya Rohini
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
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विवरण
‘‘ क्या नाम लेती हो तुम अपने गांव का... हां याद आया गन्नौर न। सुनो आज गन्नौर में दो प्यार करने वालांे ने जान दे दी ट्रेन से कटकर।’’ ‘‘हे मेरे मालिक क्या खबर सुणाई सबेरे- सबेरे म्हारे मायके की। जी भाग गए होंगे दोनों। न दी होगी मंजूरी घरवालों ने। आह भरकर सुनीता काम में लग गई । सात बज चुके थे और अभी चार घरों का काम बाकी था। सवा सात से पहले उसे हर हालत में डिम्पल के घर पहुंचना था क्योंकि स्कूल के लिए निकलने से पहले उसका माई से बर्तन मंजवाना जरूरी है। यों तो डिम्पल का पति दस बजे दुकान के लिए निकलता है पर माई से काम करवाना उसकी शान के खिलाफ है। पचास साल की उम्र की सुनीता अपने से दस-पंद्रह साल छोटी मालकिनों को भाभी शब्द से सम्बोधित करती है पर गुस्से में कभी-कभी भाभी डिम्पल को डिम्पल मैडम कहती है।
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