DUNIYA MERI MUTTHI MEIN - 4 book and story is written by Amar Kamble in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. DUNIYA MERI MUTTHI MEIN - 4 is also popular in Drama in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
DUNIYA MERI MUTTHI MEIN - 4
Amar Kamble
द्वारा
हिंदी नाटक
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विवरण
करन ने फेंके हुए कांच के ग्लास के टुकड़े जोया के पास गिरे थें। जोया ने करन के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं।” करन ने कहा, “अब दर्द नहीं होता।” जोया ने पूछा, “तो तुमने उसी वक्त बदला क्यों नहीं लिया?” करन ने कहा, “उस वक्त मेरे पास ना इतनी हिम्मत थी, ना ही ताकत थी।” जोया ने पूछा, “उस वक्त से तुम्हारा मतलब कहानी अभी बाकी है?” करन ने कहा, “हां।” जोया ने पूछा, “उसके बाद क्या हुआ?” करन ने
जोया माथे को हाथ लगा कर basketball hall के stairs पे बैठी थी। उपर से माया stairs उतरते हुए आई और उसने कहा, “जोया, चल ये books renew करन...
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