यह व्यंग्य "पुरस्कार लौटाने की कला" में लेखक सुरजीत सिंह पुरस्कार लौटाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हैं। वे बताते हैं कि आजकल लोग पुरस्कार लौटाने की घोषणाएं इस तरह कर रहे हैं जैसे यह कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना हो। मीडिया चैनल्स भी इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे यह एक तरह की प्रतिस्पर्धा बन गई है। लेखक का कहना है कि पुरस्कार लौटाना अब एक कला बन गई है, जिसमें कुछ लोग माहिर हो चुके हैं। वे पुरस्कारों की कमी को आत्मा की अनुपस्थिति से जोड़ते हैं, यह दर्शाते हुए कि पुरस्कारों का न होना एक लेखक के लिए अत्यंत दुखदायी है। इसके अलावा, लेखक यह भी बताते हैं कि लोग सामाजिक दबाव के चलते पुरस्कार लौटाने का निर्णय लेते हैं, लेकिन वास्तव में वे खुद को इस स्थिति से बाहर निकालने में असमर्थ हैं। अंत में, लेखक एक दुविधा का सामना करते हैं कि यदि वे पुरस्कार लौटाते हैं, तो उन्हें अपने पिछले रुख का सामना भी करना पड़ेगा। इस प्रकार, कहानी में पुरस्कार लौटाने की प्रक्रिया को एक हास्यस्पद और व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।
पुरस्कार लौटाने की कला
Surjeet Singh
द्वारा
हिंदी हास्य कथाएं
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विवरण
Puraskara Lautaane ki kala
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