यह संस्मरण श्याम बिहारी श्यामल द्वारा लिखा गया है, जिसमें उन्होंने आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री को याद किया है। श्यामल, जो हिंदी साहित्य में एक प्रमुख कथाकार हैं, ने विभिन्न साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है। उनका उपन्यास 'धपेल' 1998 में प्रकाशित हुआ और उन्होंने महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन पर 'कंथा' नामक एक व्यापक कृति भी लिखी है। इस संस्मरण में श्यामल ने बताया है कि कैसे 1981-82 का समय साहित्य के प्रति एक अलग दृष्टिकोण और अनुभव लेकर आया था, जब तकनीकी प्रगति इतनी विकसित नहीं थी। उस समय जानकारी प्राप्त करने के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता था, जबकि आज का युवा समाज विभिन्न ऑनलाइन माध्यमों से तुरंत जानकारी प्राप्त कर सकता है। आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की कविताएँ, जैसे 'मेघदूत', ने युवा श्यामल के मन पर गहरा असर डाला। यह संस्मरण हिंदी साहित्य के अतीत और वर्तमान पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है, जो पाठकों को कई युगों के साहित्यिक अनुभव से जोड़ता है।
जानकी वल्लभ शास्त्री की याद
Shyam Bihari Shyamal द्वारा हिंदी क्लासिक कहानियां
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विवरण
छायावाद के पांचवें स्तम्भ्ा जानकी वल्लभ शास्त्री से 1982 में हुई पहली भेंट का रोचक संस्मरण
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