यह कहानी हरिया की है, जो अपने सोने के कमरे से बाहर सरसराहट की आवाज सुनता है। उसकी खिड़की के बाहर कणक की हरी-भरी फसल लहलहा रही है। सुबह होते ही गाँव के लोग उठ जाते हैं और अपने काम में लग जाते हैं। हरिया को बाहर से आवाज सुनाई देती है और जब वह खिड़की खोलता है, तो देखता है कि दो आवारा गायें उसके खेत में घुस आई हैं। ये गायें गाँव के खेतों को नुकसान पहुँचाती हैं, और गाँव के युवक इनसे निपटने के लिए पैसे इकट्ठा करते हैं, लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है। हरिया सोचता है कि ये भूखी गायें भी कहीं न कहीं पेट भरने के लिए आ रही हैं, और वह यह महसूस करता है कि लोग स्वार्थी हो गए हैं। जब गायें दूध देती हैं, तब लोग उनका ध्यान रखते हैं, लेकिन जब वे दूध देना बंद कर देती हैं, तो उन्हें बेकार समझ कर छोड़ दिया जाता है। हरिया के मन में तड़के के अच्छे विचार हैं, लेकिन वह जानता है कि उसे पड़ोसी धर्म निभाना होगा, अन्यथा गायें उसके खेत को चट कर जाएँगी।
खेत में कणक
Ratan Chand Ratnesh द्वारा हिंदी लघुकथा
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विवरण
संयुक्त परिवारों में मिल बाँटकर सब हो जाया करता है। जमाने की हवा में जहाँ स्वयं बँट गए, वहाँ काम भी बँट गए। कुछ काम अभी, कुछ बाद में। जरूरी पहले, गैरजरूरी समय हाथ में रहा तब। सुबह का काम भी औरतों के हिस्से में अधिक है। मरद उठते हैं मरजी से------- इसी कहानी से। एक पहाड़ी गांव के इर्द—गिर्द बुनी गई रतन चंद रत्नेश की रोचक कहानी।
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