Gujarati Whatsapp Status |
Hindi Whatsapp Status
thoolika thumbippennu
ഓർമ്മയിലെ പൂവ് 🌸
പൂർണ്ണമായി വിരിഞ്ഞു നിന്നൊരു കാലം
മധുരം നുകർന്ന് പൂമ്പാറ്റകൾ പറന്നു വന്നൊരു കാലം
പുഞ്ചിരി തൂകി തലയാട്ടി നിന്നൊരു കാലം
എന്നോ മറഞ്ഞൊരു ഓർമ്മ മാത്രമായ് മാഞ്ഞുപോയി.
വർണ്ണങ്ങൾ മാഞ്ഞു, സുഗന്ധം വറ്റിവരണ്ടു
കാറ്റിൽ ഒരു ഇലപോലെ പറന്നുപോയി
ആയിരം സ്വപ്നങ്ങൾ ബാക്കിയാക്കി
ഓർമ്മകൾ മാത്രം ബാക്കിയാക്കി.
ഇടനെഞ്ചിൽ ഒരു നോവായി നീ മാറിയാലും
നിന്റെ സൗന്ദര്യവും സൗരഭ്യവും ഒരിക്കലും മാഞ്ഞുപോകില്ല
എന്റെ ഹൃദയത്തിൽ നീ എന്നും ജീവിക്കും
അങ്ങനെ നീ എന്റെ ഹൃദയത്തിലെ രാജകുമാരിയായി മാറും.
പൂവേ, നീ പോയതറിയുന്നു ഞാൻ
നിനക്കായ് ഞാൻ എൻ്റെ ഹൃദയം തുറന്നിടുന്നു
ഇവിടെ നീ എന്നെന്നും ജീവിക്കുമെന്നറിയുന്നു
നിൻ്റെ ഓർമ്മകൾ എന്നെന്നും മായാതെ നിലനിൽക്കും.
വിധിയുടെ ക്രൂരമായ കൈകളാൽ നീ മരിച്ചുവെങ്കിലും
നിൻ്റെ സ്നേഹം എന്നെന്നും നിലനിൽക്കും
നിൻ്റെ പുഞ്ചിരി എൻ്റെ മനസ്സിനെ എപ്പോഴും ആശ്വസിപ്പിക്കും
പ്രിയപ്പെട്ട പൂവേ, നിനക്ക് വിട!
✍️തൂലിക _തുമ്പിപ്പെണ്ണ്
Meera Singh
सावन की रिमझिम फुहार
उससे बाबा का दरबार
गूंजे बोल बम का नारा
उद्धार करें भोलेनाथ हमारा।।
हर - हर महादेव 🙏
मीरा सिंह
महेश रौतेला
कष्ट यहीं रह जायेंगे
सुख-दुख बैठे रह जायेंगे।
यह भाषा, वह भाषा बोलते-बोलते
चुप हो जायेंगे,
यह राह, वह राह चलते-चलते
गुम हो जायेंगे।
इस कहानी,उस कहानी को कहते-कहते
विराम ले लेगें,
इस ममता, उस ममता में ठहर
सब कुछ छोड़ जायेंगे।
इस किताब, उस किताब को पढ़
मौन जायेंगे,
कभी इसकी, कभी उसकी आलोचना करते-करते
आलोचना के पात्र बन जायेंगे।
इस विभाजन, उस विभाजन में रह
खाली हाथ चल देंगे,
शिकायतों पर विराम लग
क्षणभर में सब शान्त हो जायेंगे,
कष्ट यहीं रह जायेंगे।
*** महेश रौतेला
Awantika Palewale
मेरे चेहरे पे तेरी तो चमक है,
तेरे इश्क़ का आलम ये नक्श है।
नज़र तुझसे मिली, दिल को सुकून,
तेरी हर बात में रब की झलक है।
हवा में बस तेरा ज़िक्र बिखरता,
मेरे लफ्ज़ों में तेरा ही रक्श है।
तेरे बिन जिंदगी सूनी लगे अब,
तेरी यादों में बस रंग-ए-शफक है।
नहीं मुझको कोई गम की ख़बर अब,
तेरे प्यार में ये दिल बेकलक है।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
Ravi
ये तो तुम पर निर्भर करता है कि
वक़्त के झरोखे में कही हमेशा के लिए खो जाऊं
या
वक़्त- वक़्त झरोखे के साथ तुम्हें याद आऊं...
Neha kariyaal
बुद्ध कहते हैं-
"जो प्रेम तुमसे तुम्हारी जड़े छीन ले,
वो प्रेम, नहीं मोह है।"
hiralba vala
good morning 🌞
vaghasiya
Thousands of fights, but love has no end,
The bond of brother and sister — no one can ever pretend.♥️
Shailesh Joshi
સાચા પ્રેમ અને સાચી દોસ્તીમાં
ક્યારેય પણ, ખાલી
પ્રેમ જ પ્રેમ, અને દોસ્તી જ દોસ્તી ના હોય,
નાની મોટી નોક-ઝોક, અને
મીઠી તકરાર પણ હોય છે.
- Shailesh Joshi
Salill Upadhyay
The clock never stops,
but time always heals...!
- Salill Upadhyay
Dada Bhagwan
Glimpses of Pujyashree Deepakbhai's Toronto Satsang Tour 2025
To watch more photos, visit: https://dbf.adalaj.org/qPTyhxxc
#photooftheday #picoftheday #Photogallery #PujyashreeDeepakbhai #DadaBhagwanFoundation
Mona Ghelani
પગની છેલ્લી નાની આંગળી ભગવાને ફકત સોફા ખુરશી અને બેડની કિનારી સાથે અથડાવા જ આપી છે !!💔🥹
rakhi jain
हम भी तो किसी के प्यारे हो सकते थे
इतने बुरे भी तो नहीं
जख्म किसी को दिख तो सकते थे
हम इतने खुश तो नहीं
सोचते हैं कभी कोई पूछ ले हुआ क्या
सच कुछ कहने को नहीं
ख्वाहिशें तो अब भी है उड़ जाने की
हम किसी बंधन बंधे तो नहीं
यू तो कई उम्मीदें हैं जी उठने की
ताज्जुब हैं हम मरे तो नहीं
Thakor Pushpaben Sorabji
નથી ગમતું આજ મુજને,
દુભાયુ કેમ આજે મન!
ચાલ મળીએ આજ ખુદને"પુષ્પ"
ખુદને ગમતું આજ કરી લઈએ!
જય શ્રી કૃષ્ણ
- Thakor Pushpaben Sorabji
rakhi jain
जिंदगी में लाख परेशानी हो
अगर नासमझ बन पा रहे हो
तो lucky हो तुम...
क्योंकि जिदंगी जब समझदार बनाती है
तो बहुत तोड़ देती h
- rakhi jain
D K Rajani
हम जिसके साथ "वक्त" को भूल जाया करते थे,
लगता है "वक्त" के साथ वोह भी हमे भूल गए...!
~ D K Rajani
Mohini
*तू क्यों गया?*
सुनसान गली, रस्ता अनजान,
चाहत से भरे थे पत्थर, बेईमान।
ना कोई दरिया, ना सावन की बूंद,
फिर भी आंखें भर आईं, चुपचाप, बेजुबान।
क्या रुकना, क्या थम जाना,
हर सांस में तेरी कमी का बस जाना।
हर मोड़ पे दर्द, हर गली सदा दे,
"तू कहां है?" दिल यही दुआ दे।
मेरी रूह को तू छू क्यों गया?
फिर अगले ही दिन, रूठ क्यों गया?
_Mohiniwrites
Piyush Goel
https://www.instagram.com/reel/DL83U9mTi9E/?igsh=Y3JjMGxtNmczOGcw
Piyush Goel
https://sciencekamahakumbh.com/news/piyush-goyal/
dhruti rajput
પાનખર માં જ સંબંધ ની પરખ થાય વરસાદમાં તો બધા પાંદડા લીલા જ હોય....
dhruti rajput
બસ આ અહેસાસ માં રેવા દે કે તને મારા થી પ્રેમ છે તારા પ્રેમ થી વધુ મને આ અહેસાસ થી પ્રેમ છે....
dhruti rajput
સાચી લાગણીઓ છતાં અઘૂરી વાતો હંમેશા માણસ ને અંદર થી મૌન કરી મૂકે છે ....
રોનક જોષી. રાહગીર
https://youtu.be/-v8RglSL7HU
એક રોમાંચિત ગઝલ 🎉🎊
તું નક્કી કર...
#gazal #poetry #gujarati #matrubharti #new
Umakant
“तारीफ़ तेरे हुस्न की आती है ग़ैब से
मेरे क़लम के साथ तो यकसर नहीं हूँ मैं “
❤️
- Umakant
Shefali
#shabdone_sarname__
#shabdone_sarname_
Parag gandhi
*રસ્તાઓ પણ થાકશે એક દિવસ તમને દોડાવીને*
*શરત એ છે કે તમને વિશ્વાસ તમારા કદમો પર હોવો જોઈએ...!!!*
*🌹સુ - પ્રભાત🌹*
Parmar Mayur
🙏🙏જગતમાં વધી રહ્યા માણસો બસ "માણસાઈ" ઘટી રહી છે.
ટોળેટોળા ભેગા થઈ રહ્યાં, સંસ્કાર સંપની "સભાઓ" ઘટી રહી છે.
👭👬વિશ્વ વસ્તી દિવસ 👬👭
- Parmar Mayur
Gautam Patel
ગોહર જાન
ભારતમાં રેકોર્ડિંગ માટે મીણની ૬૦૦ કોરી ડિસ્ક સાથે આવેલા
બ્રિટિશ નિષ્ણાત ફ્રેડ ગેઇસબર્ગે શરૂ શરૂમાં જે
ગીતો રેકૉર્ડ કરાવ્યાં તે બધાં ફ્લોપ નીવડ્યાં
અને તેના માટે એ પોતે જવાબદાર હતો.
વેસ્ટર્ન મ્યુઝિક વડે રંગાયેલા તે અંગ્રેજને
ભારતીય સંગીતનું લગભગ કશું જ્ઞાન ન હતું.
આથી લોકોને શું ગમે અને શું ન ગમે તેનો
અંદાજ તેને આવતો ન હતો. એકવાર તો
કંપનીએ ભારતમાં મ્યુઝિકનો બિઝનેસ માંડી
વાળવાનું પણ વિચાર્યું, પરંતુ એ જ અરસામાં
જોગસંજોગે સુખદ ઘટના બની. ગેઇસબર્ગને
કલકત્તાના ધનિક બંગાળી બાબુને ત્યાં
સંગીતના જલસામાં હાજર રહેવાનું આમંત્રણ
મળ્યું. ગોહર જાન નામની ગાયિકાના કંઠે તેણે
સુગમ સંગીત સાંભળ્યું. શબ્દો સમજાયા નહિ,
પણ ગીતો અત્યંત કર્ણપ્રિય હતાં.
ગેઇઝબર્ગ માટે ક્લાસિકલ
મ્યુઝિકનો એ પહેલો અનુભવ
હતો--અને ત્યારે જ એ પામી
ગયો કે રેકૉર્ડિંગ બિલકુલ આવા
પ્રકારનાં ગીતોનું કરવું જોઇએ.
આ ગાયિકાનાં ડઝનબંધ ગીતોની
રેકૉર્ડ્ઝ તેણે બહાર પાડી અને
ડામાડોળ કંપની એકાએક ધૂમ નફો
રળવા લાગી. પરદેશથી માતા-પિતા
સાથે ભારત આવેલી ગોહર જાન
યુરેશિયાના આર્મેનિયા દેશની હતી. પિતાનું નામ વિલિયમ રોબર્ટ યોવર્ડ અને માતાનું નામ આલેન વિક્ટોરિઆ હેમિંગ, મૂળ ધર્મ યહૂદી હતો. માતા લગ્નવિચ્છેદ પછી મુસ્લિમ બની, માટે પુત્રીનું નામ તેણે ગોહર જાન રાખ્યું. ગોહર જાન કુલ ૨૦ ભાષામાં
ગીતો લલકારી શક્તી હતી અને તેનાં અમુક ગીતો કચ્છી બોલીનાં પણ હતાં. દરેક ગીતના રેકૉર્ડિંગ માટે તે જમાનામાં તેનો ચાર્જ રૂા. ૧,૦૦૦ હતો.
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Darshita Babubhai Shah
मैं और मेरे अह्सास
बेशुमार
बेशुमार प्यार की दौलत से छलक रहे हैं l
नशीली निगाहें चार होते ही बहक रहे हैं ll
खूबसूरत हुस्न से भरी हुई महफिल में l
अनजाने में जरा सा छूने से महक रहे हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह
kajal Thakur
सूरज की किरणें तेरे चेहरे पे मुस्कान लाए,
तेरी हर सुबह तुझे नई उमंगों से मिलाए।
खुश रहो तुम हर एक पल यूँ ही,
तेरी हर सुबह बस प्यार की मिसाल बन जाए।
🌞💫 शुभ प्रभात 💫🌞
મોહનભાઈ આનંદ
खुशहाल हुं, लफ्ज़ ए बयां करूं कैसे,
घायलभी हुं, मूस्कान अदा करूं कैसे;
मैंने पाया हुं, ज़ख्म , बहुत गहरा,
ख़ून तेरी है पहेचान, अदा करूं कैसे।
आनंद
મોહનભાઈ આનંદ
खुशहाल हुं, लफ्ज़ ए बयां करूं कैसे,
घायलभी हुं, मूस्कान अदा करूं कैसे;
मैंने पाया हुं, ज़ख्म , बहुत गहरा,
ख़ून तेरी है पहेचान, अदा करूं कैसे।
आनंद
મનોજ નાવડીયા
ઠોકરો કેટલી વાગી હશે,
પડયો હશે એ વારંવાર,
તકલીફ તો પડી ઉભાં થવામા,
પણ જેણે હાર નથી માની,
એજ જીવનની રમતમાં જીત્યો છે.
મનોજ નાવડીયા
M
🙂..सांस ना मिलेगी दोबारा..🙂
दुआ तो सब मांगते हैं,
सब अपने पसंदीदा लोगों के लिए मांगते हैं।
सब सोचते हैं कि सबके अपने लोग होते हैं,
लेकिन इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जिनका कोई नहीं है।
जिसके पास सब कुछ है, वह सोचता है—
"अगर मैं अकेला होता, तो अच्छा होता।"
और जिसका कोई नहीं है, वह सोचता है—
"काश, मेरे साथ मेरा परिवार होता, तो अच्छा होता।"
जिसके पास होता है, वह कहता है—
"मुझे नहीं चाहिए।"
और जिसके पास कुछ नहीं है, वह कहता है—
"मुझे सब कुछ चाहिए।"
चाहिए या नहीं चाहिए—इसी में एक जीवन समाप्त हो जाता है।
अगर हम सोचें कि यह पृथ्वी स्वर्ग है, तो यह स्वर्ग है;
लेकिन यदि नहीं, तो यही नर्क भी है।
हमें जो चाहिए, भगवान वह सब देकर भेजते हैं।
यह तो सच है, भाई!
जो हमारा नहीं है, वह हमें कभी नहीं मिलेगा...
और जो हमारा है, उसे कोई छीन नहीं सकता।
फिर भी करें क्या?
मनुष्य उसके पीछे भागता है, जो उसका नहीं है,
और अपनी जिंदगी का कीमती समय भागते-भागते खो देता है।
भाई, हमें जीवन एक ही बार मिलता है,
इसे खोना नहीं चाहिए।
(M Ahsrab)
Shraddha Panchal
मुजसे बात ना करके वो खुश है तो
शिकायत कैसी !!!!
और मैं उसे खुश भी ना देख पाऊ तो
मोहब्बत कैसी ????😇
GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)
टूटा काँसा जिस तरह , रहता है निःशब्द। उसी तरह से तुम रहो,
बोलो मत कटु शब्द।। दोहा-191
(नैश के दोहे से उद्धृत)
----गणेश तिवारी 'नैश'
DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR
📚✨ “एक किताब जो पहाड़ की खामोशियों को आवाज़ देगी…”
#ComingSoon
“जब पहाड़ रो पड़े” — धीरेंद्र सिंह बिष्ट द्वारा
कुछ किताबें पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं।
यह कहानी नहीं, एक पीड़ा है जो सदियों से चुप थी — अब शब्दों में ढल रही है।
यह किताब उनके लिए है:
🌿 जो अपने गाँव की मिट्टी को आज भी दिल में बसाए हुए हैं,
🌄 जो शहर की चकाचौंध में खोकर भी पहाड़ की सादगी नहीं भूले,
👵 जिनकी यादों में दादी की कहानियाँ, माँ की थाली, और पापा की चुप्पी आज भी जिंदा है।
“जब पहाड़ रो पड़े” सिर्फ एक शीर्षक नहीं,
यह एक पुकार है उन गांवों की, जिन्हें हमने पीछे छोड़ दिया —
पर उन्होंने आज तक हमें छोड़ा नहीं।
📖 इसमें हैं —
• माँ की अधूरी पुकार
• पिता की खामोश मेहनत
• वीरान गांवों की आवाज
• और एक सवाल — क्या हम कभी लौटेंगे?
🌸 अगर आपने कभी गाँव छोड़ा है,
तो इस किताब में आप अपना ही चेहरा पाएंगे —
एक ऐसा प्रतिबिंब जो आपको भीतर तक छू जाएगा।
💌 “बुक लवर्स, यह सिर्फ किताब नहीं, एक वादा है — लौटने का, समझने का, और जोड़ने का।”
🕊️ Coming Soon… Stay Tuned
#जब_पहाड़_रो_पड़े #BookLoversIndia #HindiLiterature #DhirendraSinghBisht #ComingSoon #गांवकीकहानी
DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR
📚✨ “एक किताब जो पहाड़ की खामोशियों को आवाज़ देगी…”
#ComingSoon
“जब पहाड़ रो पड़े” — धीरेंद्र सिंह बिष्ट द्वारा
कुछ किताबें पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं।
यह कहानी नहीं, एक पीड़ा है जो सदियों से चुप थी — अब शब्दों में ढल रही है।
यह किताब उनके लिए है:
🌿 जो अपने गाँव की मिट्टी को आज भी दिल में बसाए हुए हैं,
🌄 जो शहर की चकाचौंध में खोकर भी पहाड़ की सादगी नहीं भूले,
👵 जिनकी यादों में दादी की कहानियाँ, माँ की थाली, और पापा की चुप्पी आज भी जिंदा है।
“जब पहाड़ रो पड़े” सिर्फ एक शीर्षक नहीं,
यह एक पुकार है उन गांवों की, जिन्हें हमने पीछे छोड़ दिया —
पर उन्होंने आज तक हमें छोड़ा नहीं।
📖 इसमें हैं —
• माँ की अधूरी पुकार
• पिता की खामोश मेहनत
• वीरान गांवों की आवाज
• और एक सवाल — क्या हम कभी लौटेंगे?
🌸 अगर आपने कभी गाँव छोड़ा है,
तो इस किताब में आप अपना ही चेहरा पाएंगे —
एक ऐसा प्रतिबिंब जो आपको भीतर तक छू जाएगा।
💌 “बुक लवर्स, यह सिर्फ किताब नहीं, एक वादा है — लौटने का, समझने का, और जोड़ने का।”
🕊️ Coming Soon… Stay Tuned
#जब_पहाड़_रो_पड़े #BookLoversIndia #HindiLiterature #DhirendraSinghBisht #ComingSoon #गांवकीकहानी
rajesh kaliya
हमेशा दूरियों से दिल का रिश्ता हो, ये ज़रूरी तो नहीं,
पास रहकर भी अजनबी हो जाएं, ये ज़रूरी तो नहीं|
तेरी यादों के सहारे ही तो कटती है ये रातें मेरी,
हर रात तेरी बाहों में ही गुज़रे, ये ज़रूरी तो नहीं|
कई ख्वाब अधूरे हैं, कई बातें अनकही सी हैं,
हर बात लबों तक आए, ये ज़रूरी तो नहीं|
कभी तो लौट आएगा वो, इसी आस में बैठे हैं,
हमेशा ही इंतेज़ार में रहें, ये ज़रूरी तो नही|
ये जुदाई का मौसम भी गुज़र जाएगा इक दिन,
हर मौसम ही दर्द भरा हो, ये ज़रूरी तो नही|
rajesh kaliya
उसकी आँखों का नशा होने लगा है,
इश्क़ में जीने का मज़ा होने लगा है।
चाँदनी रातें, ये महकती हुई हवा,
मौसम कुछ ज़्यादा ही हसीं होने लगा है।
पहले तो खुद में ही गुम रहते थे हम,
अब किसी और पे दिल फ़िदा होने लगा है।
उसकी हर बात, हर एक नाज़-ओ-अदा,
मेरे हर दर्द की दवा होने लगा है।
क्या कहें 'राजेश' आलम इस दिल का,
वो अजनबी अब मेरा खुदा होने लगा है।
Harish kumar
आजकल की मित्रता वह मित्रता नहीं रही, नशे का व्यापार बढ़ रहा है। जिसके चलते मन में एक भय बना रहता है।
Harish kumar
वर्तमान समय में हर एक चीज में मिलावट है, शुद्धता कम होती जा रही है।
Harish kumar
आज के समय में प्रकृति आपदाओं का जिक्र।
Harish kumar
बहू का सास के प्रति अच्छा व्यवहार ना होना।
rajesh kaliya
आ बैठ पास कुछ गुनगुनाते हैं,
हाल-ए-दिल क्या है तुम्हें बताते हैं।
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें,
बेचैनियों को ज़रा सुलाते हैं।
तन्हाई का ये आलम अजीब है,
आओ, एक-दूजे में खो जाते हैं।
जो दर्द दबा है इन साँसों में,
आँखों से आज छलकाते हैं।
इश्क़ का ये रंगीन समां है,
चलो, दुनिया को भुलाते हैं। राजेश कालिया
rajesh kaliya
कोई तो बुझाओ विरह की आग को,
मत बजाओ अब सावन के राग को।
नफ़रत-सी हो गई है अब उजालों से,
अंधेरा रहने दो, बुझा दो चिराग़ को।
धो भी देता अगर दामन में होता,
कैसे मिटाऊँ दिल पर लगे दाग़ को।
उनके बग़ैर जीना दुस्वार हो गया,
दवा फेंक दो, डसने दे नाग़ को।
ज़ख़्म-ए-हिज्र कब तक सहूँ मैं अकेला,
कर दो कभी तो ख़ुदा इस इंतक़ाम को।
Biru Rajkumar
---
🌺 "छिन्नमस्तिका – आत्मा की पुकार" 🌺
कटे हुए सिर की मुस्कान में, छिपा है ज्ञान महान,
न कोई भय, न मोह शेष, बस शून्य का वरदान।
अपने ही हाथों से, सिर जब देवी काटती हैं,
तो अहंकार, वासना, सब सीमाएँ लांघ जाती हैं।
तीन धाराएं रक्त की, जीवन-स्रोत बन जाएं,
सेविकाओं को पोषण दें, आत्मा को राह दिखाएं।
नग्नता में नहीं लज्जा, वह सत्य की पहचान है,
जहाँ आत्मा स्वतंत्र हो, वही असली ज्ञान है।
रति–कामदेव के ऊपर खड़ी, शक्ति की वह मूरत है,
वासना पर विजयी नारी, साधना की सूरत है।
कटे हुए मस्तक की वाणी, चुप रहकर भी बोलती है,
"तू जब खुद को खो देगा, तभी मुक्ति मिलती है।"
छिन्नमस्तिका न हिंसा हैं, न केवल तांत्रिक कथा,
वो हैं आत्म-ज्ञान की देवी, जो दिखाएं सच्ची दिशा।
Biru Rajkumar
---
🌺 प्रकृति रूपी भुवनेश्वरी को समर्पित भाव स्तुति 🌺
तू प्रकृति है, भुवनेश्वरी है, संसार की गति है।
प्रेम की पूर्णता है तू, सौंदर्य की सजीव रेखा है।
आकर्षण भी तू है, करुणा भी तू —
मेरा हर कदम, तुझसे ही तो प्रेरणा पाता है।
जब प्रेम की राह पर चलने का संकल्प होता है,
तब भीतर से एक स्वर उठता है —
"तू ही मेरी गति है, तू ही मेरा सहारा।"
संसार तुझमें है और तू संसार में।
तू हर फूल की मुस्कान है,
हर पत्ते की थिरकन, हर नदी की लय है।
तू सृष्टि के मस्तक पर विराजमान है —
साँसों के आरोह-अवरोह में बहती चेतना है।
उतार-चढ़ाव तुझमें हैं, पर तू स्थिर भी है।
तू चंचला है, परंतु सच्चिदानंद भी।
क्या तुझ पर कुछ लिख पाऊँ मैं?
नमन ही कर सकता हूँ, समर्पण ही मेरा शब्द है।
---
Biru Rajkumar
---
प्रकृति त्रिपुरा सुंदरी
तू प्रकृति त्रिपुरा सुंदरी है,
पेड़-पौधों में जीवन रस बनके बहती है।
फूलों की महक में बसी है,
नदियों की चंचलता में तू हँसती है।
समुद्र की लहरों में तेरी थिरकन,
तीन गुणों (सत्त्व, रज, तम) से सजी तेरी पहचान।
हर प्राणी की तू साँस है,
मानव जीवन में दादी सी ममता की बात है।
भोली-भाली, सरल स्वभाव,
ना जाने तू कितने रंगों में ढलती हर साँझ और प्रभात।
धूर्तों के बहकावे में बह जाती है,
पर सच्चा ज्ञानी तुझमें ही प्रभु को पाता है।
तू ही धरती, तू ही गगन,
तू ही अग्नि, तू ही पवन।
तू ही सत्य की पहचान,
Dr. Damyanti H. Bhatt
Happy Gurupurnima, ગુરુપૂર્ણિમાની બધા મિત્રોને શુભકામનાઓ 💐💐💐🙏🌹🌹🌹
dhruti rajput
શું અંત સુધી ચાલવા ની તૈયારી છે તારી ?
તો હાથ થામી રાખવાની જવાબદારી હું ઉપાડી લઈશ....
dhruti rajput
એ વ્યક્તિ પૂરેપૂરો જાદુગર નીકળ્યો માથું ચૂમી અને આખી કિસ્મત એના નામે કરી ગયો....
GIRLy Quotes
https://www.instagram.com/reel/DIIq2fJRSGL/?igsh=djltb3BsYzAwb3I1
Rinky
ज़माने की नजर में अकड़ के चलना सिख लो दोस्तो,
मोम जैसा दिल ले के फिरोगे तो लोग जलाते रहेंगे !
kapila padhiyar
सपने आते हे थामने हाथ मेरा
पर हम मुँह मोड लेते हैं ।
सपनो से नफरत नही हमे
हमे तो डर हे,
कही हम हाथ न छोड दे सपनोका
kapila padhiyar
kapila padhiyar
सपने आते हे थामने हाथ मेरा
पर हम मुँह मोड लेते हैं ।
सपनो से नफरत नही हमे
हमे तो डर हे,
कही हम हाथ न छोड दे सपनोका
kapila padhiyar
Mrs Farida Desar foram
શુભ રાત્રી
વૈભવકુમાર ઉમેશચંદ્ર ઓઝા
દિવાસ્વપ્નની જેમ નઈ,
પણ આખી રાત સપનામાં આવ,
જરાક આવીને ઊંઘ ના બગાડ,
કારણ,
અનંત તરસ છે મારી તારા પ્રેમની.
- સ્પંદન
Sangeeta Khakhodiya
शायरी 😊 ❤️❤️
खुली जुल्फें अच्छी लगती है
माथे पर बिंदी प्यारी लगती है
ये सूट तुमपे ज्यादा सूट करता हैं
ये सादगी तुमपे जचती है
तारीफ़ करु जितनी भी कम लगती हैं
तेरी मेरे साथ जुड़ी लाजवाब लगती हैं 😉❤️
shah
थोड़ा मुस्कुराइए...😍
मुझे उल्टी सीधी हरकतें सिखाने वाले...☹️🤔
"गुरू-घंटाल"
दोस्तो को
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं...🤣🤣😂😂🥳😜😜
Sangeeta Khakhodiya
शायरी 😊❤️❤️
यू बेमंज़िल सी राहों मै कोई अजनबी मिला
कुछ पल मै खूबसूरत सी ख्वाहिशें दे गया
उसकी यादों मै हो मेरे चेहरे पे मुस्कुराहट
ऐसी वो अदाएं कर गया
एक अजनबी कुछ जादू सा कर गया
उसकी मुस्कान पे मुझे फिदा कर गया
एक अजनबी दिल बेकाबू करके
एक ख्वाहिश सी बन गया
Sangeeta Khakhodiya
गुनाह हो गया 🥺😔
मुस्कुराना मेरा गुनाह हो गया
दुनिया की नजर में ये जुल्म हो गया
क्या मेरा लड़की होना गुनाह हो गया
टोका टाकी है कपड़ों पे मेरे
क्या दुनिया की नजर इतनी गिर गईं
के मेरा हर एक कपड़ा गंदा हो गया
क्या मेरा लड़की होना गुनाह ही गया
रस्ते में झुकके छल नाराज़ मैं अपनी
क्या मैने किसी का कत्ल कर दिया
रोज ये चेहरे गंदी नजर से देखते है मुझे
जीते जी मौत से वाकिफ कर दिया
क्या मेरा लड़की होना गुनाह हो गया
घर की चार दिवारी मै मुझे बांध दिया
कोई मेरे पंख कट ले गया
क्या मैं लड़की हु ये मेरा गुनाह हो गया
सीना तन चलते है ये लड़के
लड़के होके इन्होंने अहसान कर दिया
खुदकी बहनों की करते इज्जत
दूसरी की बहनों को मजा बन लिया
क्या मेरा लड़की होना गुनाह ही गया
लड़कों को सीखते दुनिया से लड़ना
किससे ना डरना ना जुर्म सहना
फिर क्यों बेटियों को चुप करके बेबस बना दिया
अपने हालतों पे बस रोना सिखा दिया
क्या सचमे लड़की होना गुनाह हो गया
लड़की-लड़के मै न कोई भी
बराबरी क्यों कहते मां बाप हमसे
किसी और की अमानत है तू
वो कहते किसी और की बेटी है तू
कोई कहे मुझसे आखिर मैं हु किसकी
क्या मेरा न कोई अस्तित्व है
बस टुकड़ों मै बता गया मुझे
क्या मेरा लड़की होना गुनाह हो गया
Bk swan and lotus translators
The image you provided features a stylized figure resembling a martial artist or a ninja, holding a sword. Behind the figure are two swirling brushstrokes, one in shades of blue and the other in shades of purple/pink. Overlaid on the image is text that reads:
"FICTIONAL HEROES NEED SPECIAL COSTUMES
REAL HEROES DOESN'T"
Let's break down an in-depth analysis of this image:
I. Visual Elements and Their Interpretation:
* The Figure: The man in the black martial arts attire with a sword immediately evokes the idea of a hero, particularly from action films, comic books, or historical narratives. His stance suggests readiness or a moment of contemplation, aligning with the concept of a "hero." The black costume, while simple, could be seen as a "special costume" in a fictional context (e.g., a ninja's uniform).
* The Swirling Brushstrokes: These abstract elements add dynamism and visual interest. Their fluid nature could symbolize movement, energy, or even the abstract concepts of heroism and ideals. The contrasting colors (blue and purple/pink) might subtly suggest duality or different facets of a concept.
* Minimalist Background: The plain white background ensures that the figure and the text are the primary focus, preventing any distraction from the core message.
II. Textual Message and Its Core Theme:
The central message is a dichotomy between "fictional heroes" and "real heroes" concerning their attire:
* "FICTIONAL HEROES NEED SPECIAL COSTUMES": This part directly references the tropes of superhero comics, fantasy novels, and action movies where characters often have elaborate, iconic costumes (e.g., Superman's cape, Batman's cowl, a knight's armor). These costumes are integral to their identity and often provide special abilities or symbolize their role.
* "REAL HEROES DOESN'T": This statement is the counterpoint. It asserts that true heroism in the real world doesn't require a specific uniform or flashy attire. It implies that real heroes are defined by their actions, character, and impact, rather than their outward appearance.
III. Deeper Meanings and Interpretations:
* Redefining Heroism: The image challenges the popular, often glamorized, perception of a hero. It shifts the focus from external attributes (costumes, powers) to internal qualities (bravery, selflessness, integrity).
* Everyday Heroes: By stating "real heroes doesn't," the message implicitly celebrates everyday people who perform heroic acts without fanfare or special recognition. This could include first responders, medical professionals, teachers, activists, or even ordinary individuals who stand up for what's right.
* Authenticity vs. Performance: Fictional heroes often "perform" heroism for an audience. Real heroism, as suggested, is more authentic and driven by necessity or conviction, not by a need for a specific appearance.
* The "Costume" of Real Heroes: While the text states real heroes don't need special costumes, one could argue that their "costume" is their character, their principles, or the simple clothes they wear while doing extraordinary things. The martial artist in the image, despite his "uniform," embodies a certain discipline and skill that could be seen as the "costume" of a real hero in his context (e.g., a defender).
* Critique of Superficiality: The message can be seen as a subtle critique of a society that often values outward appearances and superficial markers of success or importance over substance and genuine contribution.
* Empowerment: It empowers the viewer by suggesting that anyone can be a hero, regardless of their status, wealth, or wardrobe. Heroism is accessible and intrinsic, not exclusive to those with fantastical powers or elaborate gear.
IV. Irony/Paradox in the Image:
There's a subtle irony in the image:
* The figure depicted, while perhaps representing the spirit of a real hero (skill, discipline), is wearing a somewhat "special costume" (a martial arts uniform) and holding a weapon, which are often associated with fictional heroes. This creates a slight visual paradox with the text's assertion that real heroes don't need special costumes.
* However, this paradox can also be interpreted as the image using a familiar visual trope (the martial artist hero) to convey a deeper, less conventional message about heroism. The uniform here might symbolize discipline or readiness, rather than a fantastical power-up.
V. Overall Impact:
The image is simple yet thought-provoking. It uses a common visual archetype to deliver a powerful message about the true nature of heroism. It encourages viewers to look beyond superficial appearances and recognize the inherent bravery and strength that resides in ordinary individuals, emphasizing that real heroism is about action and character, not about what one wears. It effectively separates the idea of "hero" from the typical pop culture iconography, making it more relatable and universal.
Umakant
ઓળખો તો ઔષધ.
અળાઇ:-
હરડે અને ફટકડીનું પાણી બનાવી અળાઇ
પર રોજ લગાવવાથી ફાયદો થાય છે.
🧘
- Umakant
Umakant
કોઇ કોઇનું નથી રે, કોઇ કોઇનું નથી રે
ક્યાંથી આવ્યા, ક્યાં જવાના, તેની ખબર
નથી રે
સૃષ્ટિ રચી એવી તેં તો, દેખાવા છતાં
સાચી નથી રે
પળપળનો હિસાબ રાખે તું તો પળ
મોંઘી ઘણી રે,
સઘળે વસે વ્યાપક બની, છતાં દેખાતી નથી
નથી. રે
કામ ક્રોધના માર છે. આકરા ,છતાં
દેખાતા નથી રે
લોભ-મોહ તણા ગૂંચળાં ઝાઝાં, હવે
છુટાતું નથી રે
અહંકારમાં ડૂબ્યો ઘણો, હવે બહાર
નીકળાતું નથી રે
સોંપવો છે ભાર ‘માં’ ને સોંપાતો નથી રે-
કોઇ
પગ પકડી શરણું લેવું છે ‘મા’ નું , લેવાતું
નથી રે
- - - - સદ્ગુરુ દેવેન્દ્ર ઘીયા (કાકા)
🙏
- Umakant
Ex Muslim Suhana
Joining Indian army is haram.
#India #indianarmy
nishant
Tume lagta mein vho aashiq hu jo tum baat nahi karegi toh jauga tume bhool
Mene Tumse pyar kiya tha bitnane tere sath zindagi ko na ki bane kisike samne cool
Mein nahi hu vho ladka jo leke ghumee 4 phool
Mere bagiche mein hai khilta bass tere nam ka Ek phool
Bk swan and lotus translators
The image displays a quote attributed to "Swami Mithabhaashaananda" superimposed on a vibrant, rainbow-colored background. Below the text, a partial image of a man, presumably Swami Mithabhaashaananda, is visible in the bottom right corner.
Let's break down the quote and its potential meaning:
The Quote:
"CROW PERCHES ON A BULL AND REPEATEDLY RUPTURES IT'S WOUND AND MAKES IT INCURABLE TO EAT FLESH FROM IT. IN OUR SOCIETY SOME PEOPLE ALWAYS REMINDS OTHERS THEIR BITTER OR BAD PAST TO MAKE THEM SAD FOR THEIR EVIL SATISFACTION. STAY AWAY FROM THEM TO PROTECT YOUR MENTAL PEACE."
* swami Mithabhaashaananda
In-depth Analysis:
* The Allegory of the Crow and the Bull:
* The Crow: In this analogy, the crow represents malicious or negative individuals. Crows are often associated with scavenging and sometimes with ill omens. Here, the crow's action of "repeatedly rupturing the wound" signifies a deliberate and persistent act of inflicting pain or reopening old wounds.
* The Bull: The bull, a strong and typically resilient animal, symbolizes a person who has experienced past hardships or "wounds" (bitter or bad past). The fact that the crow makes the wound "incurable" implies that the constant re-opening prevents healing and perpetuates suffering.
* "To eat flesh from it": This phrase highlights the parasitic and exploitative nature of the crow's actions. The crow benefits (derives "satisfaction") from the bull's continued suffering.
* Application to Human Society:
* "In our society some people always reminds others their bitter or bad past": This is the direct parallel. Swami Mithabhaashaananda is drawing a connection between the crow's behavior and certain human behaviors. These individuals derive pleasure ("evil satisfaction") from seeing others in distress.
* Motivations for such behavior: While the quote states "evil satisfaction," the motivations could be complex:
* Schadenfreude: Pleasure derived from another person's misfortune.
* Control/Power Dynamics: Keeping someone feeling indebted or inferior.
* Insecurity: Projecting their own issues onto others.
* Lack of Empathy: Inability to understand or share the feelings of another.
* Revenge/Retribution: If the "bad past" involved them in some way.
* The Counsel: "STAY AWAY FROM THEM TO PROTECT YOUR MENTAL PEACE."
* This is the core message and the practical advice offered. It emphasizes the importance of self-preservation and mental well-being.
* Protecting Mental Peace: The quote recognizes that being constantly reminded of past traumas or mistakes can be detrimental to one's psychological health, leading to sadness, anxiety, and a diminished sense of self-worth.
* Setting Boundaries: The advice to "stay away" is a strong recommendation for setting clear boundaries with individuals who engage in such harmful behavior. This could mean:
* Physical distance: Literally avoiding their presence.
* Emotional distance: Not engaging with their attempts to provoke or upset.
* Limiting communication: Reducing interaction to a minimum.
* Disengaging from toxic conversations: Refusing to dwell on the past.
Overall Message and Significance:
The quote delivers a powerful message about identifying and disengaging from toxic relationships or interactions that actively undermine one's healing and well-being. It uses a vivid and somewhat stark analogy to illustrate the destructive nature of constantly bringing up someone's past misfortunes for one's own perverse gratification.
The emphasis on "mental peace" highlights a key aspect of well-being, suggesting that it is a valuable asset that needs active protection. In a world where people can sometimes be inadvertently or intentionally cruel, this quote serves as a reminder to prioritize self-care and to choose environments and relationships that foster growth and healing rather than perpetuate pain.
The "Swami Mithabhaashaananda" attribution suggests a spiritual or philosophical underpinning to this advice, implying that protecting one's inner peace is a spiritual discipline. "Mithabhaashaananda" itself could be a name derived from Sanskrit, possibly relating to "moderate speech" or "joy in truth/moderation," which would align with the wisdom imparted.
Umakant
કોઇ કોઇનું નથી રે, કોઇ કોઇનું નથી રે
ક્યાંથી આવ્યા, ક્યાં જવાના, તેની ખબર
નથી રે
સૃષ્ટિ રચી એવી તેં તો, દેખાવા છતાં
સાચી નથી રે
પળપળનો હિસાબ રાખે તું તો પળ
મોંઘી ઘણી રે,
સઘળે વસે વ્યાપક બની, છતાં દેખાતી નથી
નથી. રે
કામ ક્રોધના માર છે. આકરા ,છતાં
દેખાતા નથી રે
લોભ-મોહ તણા ગૂંચળાં ઝાઝાં, હવે
છુટાતું નથી રે
અહંકારમાં ડૂબ્યો ઘણો, હવે બહાર
નીકળાતું નથી રે
સોંપવો છે ભાર ‘માં’ ને સોંપાતો નથી રે-
કોઇ
પગ પકડી શરણું લેવું છે ‘મા’ નું , લેવાતું
નથી રે
- - - - સદ્ગુરુ દેવેન્દ્ર ઘીયા (કાકા)
🙏
- Umakant
Bitu
हर कदम पर हैं मुझे आपकी जरूरत ,
जनाब.....
अब इसे आप मेरी आदत समझो या लत।।
Umakant
કોઇ કોઇનું નથી રે, કોઇ કોઇનું નથી રે
ક્યાંથી આવ્યા, ક્યાં જવાના, તેની ખબર
નથી રે
સૃષ્ટિ રચી એવી તેં તો, દેખાવા છતાં
સાચી નથી રે
પળપળનો હિસાબ રાખે તું તો પળ
મોંઘી ઘણી રે,
સઘળે વસે વ્યાપક બની, છતાં દેખાતી નથી
નથી. રે
કામ ક્રોધના માર છે. આકરા ,છતાં
દેખાતા નથી રે
લોભ-મોહ તણા ગૂંચળાં ઝાઝાં, હવે
છુટાતું નથી રે
અહંકારમાં ડૂબ્યો ઘણો, હવે બહાર
નીકળાતું નથી રે
સોંપવો છે ભાર ‘માં’ ને સોંપાતો નથી રે-
કોઇ
પગ પકડી શરણું લેવું છે ‘મા’ નું , લેવાતું
નથી રે
- - - - સદ્ગુરુ દેવેન્દ્ર ઘીયા (કાકા)
🙏
- Umakant
parth Shukla
"अपने ही पराए हो गए"
घर जिनको कहते थे, वो अब जंजीर बन गए,
अपने ही लोग मेरे लिए तीर बन गए।
जिन हाथों ने कभी दुलार से छुआ था मुझे,
आज वही हाथ मेरे लिए ज़लील बन गए।
ना चाहते हैं, ना अपनापन जताते हैं,
हर बात पे ताना, हर लम्हा सताते हैं।
मेरे आँसू भी अब उन्हें नजर नहीं आते,
वो बस अपने ग़ुस्से में मुझे मिटाते हैं।
छत है मगर साया नहीं है किसी प्यार का,
जिस्म ज़िंदा है पर दिल मर चुका है हर बार का।
घर तो है पर उसमें अब घर जैसा कुछ नहीं,
हर दीवार गवाह है मेरी टूटी हर उम्मीद की।
काश कोई सुनता इस दिल की खामोशी,
काश कोई समझता मेरी मजबूरी और बेबसी।
पर मैं फिर भी मुस्कुराता हूँ हर चोट छुपा के,
क्योंकि आदत हो गई है अब तन्हाई निभा के।
kajal Thakur
"तेरी यादों का कारवाँ, हर पल मेरे साथ चलता है,
हर मुस्कान के पीछे, तेरा ही चेहरा पलटता है।
तू दूर होकर भी, मेरे दिल के पास है,
तेरे बिना भी ये दिल, तुझसे ही बात करता है।"
Kiya
जुबान मेरी,जिक्र तेरा।
रूह मेरी पर फिकर तेरी।। -K.B
Bk swan and lotus translators
The image you sent features a quote attributed to "Swami Mithabhaashaanaanda" against a background of colorful, brushstroke-like lines and a man in the foreground. Let's break down the image and its content:
1. The Quote:
The central message of the image is the quote:
"IF TAXES ARE IMPOSED ON TALKS AND THOUGHTS, THE EACH AND EVERY WORD BECOMES QUESTIONABLE, ACCOUNTABLE AND ANSWERABLE. SO TALK WHAT IS REQUIRED. THINK WHAT IS NECESSARY."
* Swami Mithabhaashaanaanda
* Core Idea: The quote explores a hypothetical scenario where thoughts and words are subject to taxation. This is a metaphorical way of highlighting the potential negative consequences of excessive scrutiny or regulation on freedom of expression and internal thought.
* Consequences of "Taxes": If "taxes" were imposed, the quote suggests that every word would become:
* Questionable: People would doubt the intent or meaning behind their own and others' words.
* Accountable: There would be a burden to justify or explain every utterance.
* Answerable: Individuals would be held responsible for their thoughts and speech in a very direct, perhaps punitive, way.
* Implied Message/Call to Action: The latter part of the quote acts as a prescriptive statement: "SO TALK WHAT IS REQUIRED. THINK WHAT IS NECESSARY." This suggests that in a world where speech and thought are so heavily scrutinized (or even without such scrutiny, as a general principle), it is wise to be concise, deliberate, and purposeful in what one says and thinks. It advocates for mindful communication and thought, avoiding superfluous or reckless expression.
* Philosophical Underpinnings: The quote touches upon themes of:
* Freedom of Speech/Thought: By envisioning a scenario where these are restricted (taxed), it implicitly values their unhindered nature.
* Mindfulness and Prudence: It encourages a disciplined approach to verbal and mental activity.
* Consequences of Actions/Words: It points out that even intangible things like thoughts can have significant ramifications.
* The Name "Mithabhaashaanaanda": This name itself is interesting. In Sanskrit, "Mita" (मित) means "measured," "moderate," or "limited." "Bhasha" (भाषा) means "speech" or "language." "Ananda" (आनन्द) means "joy," "happiness," or "bliss." So, "Mithabhaashaanaanda" could be interpreted as "one who finds joy in measured or moderate speech," or "the bliss of restrained speech." This name perfectly aligns with the message of the quote, suggesting that the "Swami" (a title for a Hindu ascetic or spiritual teacher) embodies the very principle he preaches.
2. The Visual Elements:
* Background: The background features vibrant, sweeping brushstrokes in a rainbow of colors (red, orange, yellow, green, blue, purple). This dynamic and artistic element adds a sense of creativity and perhaps even a visual representation of the diverse flow of thoughts and expressions. The white background behind the text makes it stand out clearly.
* Man in the Foreground: A man is pictured in the foreground, looking directly at the viewer with a slight smile. He is wearing glasses and appears to be in a light-colored polo shirt, possibly with a logo on it (though it's not clear). His presence grounds the abstract quote with a human element, perhaps representing the speaker or simply an individual contemplating the message. He appears to be a person of Indian origin, consistent with the Sanskrit-derived name "Mithabhaashaanaanda."
* Composition: The man is placed towards the bottom right, with the colorful streaks radiating from behind him and to his left. The quote is positioned prominently at the top, drawing immediate attention. This composition creates a balance between the human element, the artistic background, and the textual message.
3. Overall Interpretation:
The image effectively combines a thought-provoking spiritual or philosophical quote with appealing visual aesthetics. It encourages introspection about the power and responsibility of our words and thoughts. The hypothetical "taxes" serve as a strong metaphor for the potential pitfalls of unbridled expression, leading to the wisdom of being deliberate and necessary in our communication and internal deliberations. The name of the "Swami" reinforces the core message, making the entire piece feel cohesive and purposeful. It seems designed to inspire a more conscious approach to speaking and thinking.
Ex Muslim Suhana
It was proved that Muhammad was not a prophet. 👍🏻
vedika
❤️ "तुम अब बाहर नहीं… मेरे अंदर हो।"
Bhagyavi Patel
હું ફરી આવી છું મારી નવી કવિતા લઈને — માફ કરશો થોડી મોડી આવી ❤️
આ શબ્દો એ યાદોના ઝરણા જેવાં છે… જેને વાંચીને તમારું મન કહેશે "હા, કંઈક તું પણ એવું જ કઈ અનુભવે છે!" 💭
આ સમયે તારો સથવારો જંખુ છું... (સંપૂર્ણ કવિતા નીચે છે👇)
#દિલોનીડાયરી #DiaryOfALover
#GujaratiPoetry #GujaratiFeelings
#પ્રેમકવિતા #હ્રદયસ્પર્શી
#GujaratiHeart #જંખુછું #વિરહકવિતા
ADRIL
Thank you GURUJI for pouring keenness in me to learn so much from everywhere..
My life is my best GURU who taught every lesson without taking fees from me..
My kids are my another best GURUS who taught me to look at them & forget every worry with smile..
My good & bad time is my another GURU who taught me that if you fall, never fall like a leaf who dies but fall like a seed who generate..
My mother is my another GURU who never let me give up on anything.. & My father’s death taught me that nothing is forever, live now..
THANK YOU GURU JI
🙏🙏🙏
Bitu
कुछ शख्स मेरी परवरिश पर उंगली उठाते है,
बात बात पर मुझको मेरी औकात दिखाते हैं ।
मुझे मां बहन की गाली देकर मिलता हैं जिन्हें सकून
मैं संस्कारहीन हूं वो बस यही दोहराते हैं।
Umakant
“अपने हुए पराये”
“अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
ग़म की जो तक़दीर न होती, जो इतनी बेकिर न होती
दिल पर इतना बोझ ना होता, जोड़ी में जंजीर ना होती
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
जिन रहो से कोई ना आए, बैठे उनको नैना बिछाए
दिन नादान कहे जाता है, शायद वो शायद लौट आये
अपने-अपने हुए पराये
कौन है हम क्यू जाने कोई, अपना हमें क्यू माने कोई
बेहतर है इस बदहाली में, अब ना पहचाने कोई
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
ग़म की जो तक़दीर न होती, जो इतनी बेकिर न होती
दिल पर इतना बोझ ना होता, जोड़ी में जंजीर ना होती
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
जिन रहो से कोई ना आए, बैठे उनको नैना बिछाए
दिन नादान कहे जाता है, शायद वो शायद लौट आये
अपने-अपने हुए पराये
कौन है हम क्यू जाने कोई, अपना हमें क्यू माने कोई
बेहतर है इस बदहाली में, अब ना पहचाने कोई
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये”
- Umakant
Umakant
अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ
थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ
छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा
रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ
आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ
💕
- Umakant
Tr. Mrs. Snehal Jani
પ્રત્યક્ષ અને પરોક્ષ તમામ ગુરુજનોને વંદન😊
Umakant
“सजनी की आँखों में
छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही
साजन भीग गया”
❤️
- Umakant
उषा जरवाल
माँ और पत्नी दोनों ही आपकी गुरु हैं ।
माँ कहती है कि पत्नी सिखाती है और पत्नी कहती है कि माँ सिखाती है ।
विनम्रता की पराकाष्ठा तो देखिए कि सिखाती दोनों हैं लेकिन उसका श्रेय दोनों ही नहीं लेना चाहती ।
- उषा जरवाल
उषा जरवाल
यूँ ही एक छोटी - सी बात पर रिश्ते पुराने बिगड़ गए,
बात ‘सही क्या है ?’ से शुरू हुई थी और वे ‘सही कौन है ?’ पर अड़ गए ।
उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
Sangeeta Khakhodiya
😊😊
पल पल मुस्कुराओ ना जाने कल क्या होना है
जिंदगी आज है कल पे क्या रहना है 😊🤗
D K Rajani
जरूरत सजदा करवाती है,
बाकी इबादत कौन करता है ?
dhruti rajput
ચોધાર આંસુ એ રડી પડી આજ મારી કિસ્મત કે તું તો મજા ની માણસ છે હું ખરાબ ચાલી રહી છું....
Thakor Pushpaben Sorabji
સર્વસ્વ તુજ પ્રભુ
હે કેશવ તારો કોઈ અંત નથી
સર્વે સર્વસ્વ તું જ છે માધવ!
સૌ ભૂતોના હૃદયમાં રહેલો આત્મા તું,
સર્વ ભૂતોનો આદિ,મધ્યને અંત પણ તું!
અદિતિના બાર પુત્રોમાં વિષ્ણુ તુ,
જ્યોતિઓમાં અંશુમાલી સૂર્ય તું!.....
ઓગણપચાસ વાયુ દેવતાઓનું તેજ તું,
એમ જ નક્ષત્રોનો અધિપતિ ચંદ્રમા તુ!.
વેદોમાં સામવેદ તું, દેવોમાં ઈન્દ્ર તું,
ઇન્દ્રિયોમાં મન તું,પ્રાણીઓમાં ચેતના તું.
અગિયાર રૂદ્રોમાં શંકર તું,
યક્ષ-રાક્ષસોમાં ધનનો સ્વામી કુબેર તું,
આઠ વસુઓમાં અગ્નિ તું,
શિખરો વાળા પર્વતોમાં મેરુ પર્વત તું!
પુરોહિતોમાં બૃહસ્પતિ તું,
સેનાપતિઓમાં સ્કંદ તું,
જળાશયોમાં સમુદ્ર તું!......
મહર્ષિઓમાં ભૃગુ તું,
અર્થ બોધક શબ્દોમાં ઓંકાર તું,
સર્વ યજ્ઞોમાં જપયજ્ઞ તું,
સ્થાવરોમાં હિમાલય તું!.....
વૃક્ષોમાં પીપળાનું વૃક્ષ તું,
દેવર્ષિઓમાં નારદમુનિ તું,
ગંન્ધર્વોમાં ચિત્રરથ ને
સિદ્ધોમાં કપિલમુનિ તું......
અશ્વોમાં અમૃતની સાથે
ઉદ્દભવેલો ઉચ્ચૈ: શ્રવા અશ્વ તું,
ગજેન્દ્રોમાં ઐરાવત તું,
મનુષ્યોમાં રાજા તું!....…
શસ્ત્રોમાં વ્રજ તું
ગાયોમાં કામધેનુ તું,
કામદેવેય તું,
સર્પોમાં સર્પરાજ વાસુકી તું!...
નાગોમાં શેષનાગ તું,
જળચરોમાં વરૂણ દેવતા તું,
પિતૃઓમાં અર્યમાં નામનો પિતૃ તું,
શાસન કરનારાઓમાં યમરાજ તું!....
દૈત્યોમાં પ્રહલાદ તું, સમય તું,
પશુઓમાં મૃગરાજ સિંહને
પક્ષીઓમાં ગરુડ તું!...
પાવનકારી વાયુ તું,
શસ્ત્રધારીઓમાં શ્રીરામ તું,
માછલીમાં મગર તું,
નદીઓમાં ભગીરથી ગંગા તું!......
સૃષ્ટિઓનો આદિ,મધ્ય અને અંત તું,
વિદ્યાઓમાં આત્મવિદ્યા તું!........
અક્ષરોમાં આકાર તું
સમાસો દ્વંદ્વ સમાસ તું,
કાળનોય મહાકાળ તું,
સર્વ તરફ મુખ ધરાવનાર
વિરાટસ્વરૂપે ધાતા તું!......
સૌનો સંહાર કરનાર મૃત્યુ ને
ઉત્પન્ન થનારાઓની ઉત્પતિનો હેતુ તું,
સ્ત્રીઓમાં કીર્તિ તું,
શ્રી,વાક્, સ્મૃતિ, મેઘા, ધૃતિને ક્ષમા તું!
શ્રુતિઓમાં બૃહત નામનો સામ તું,
છંદોમાં ગાયત્રી છંદ તું,મહિનાઓમાં
માગશર ને ઋતુઓમાં વસંત તું!.....
છળનારાઓમાં જુગાર તું,
પ્રતિભાશાળીઓનો પ્રભાવ તું,
જીતનારાઓનો વિજય તું,
નિશ્ચયકારો નો નિશ્ચય તું,
સાત્વિક માણસોનો સાત્વિક ભાવ તું!..
વાસુદેવ તું,મુનિઓમાં વેદ વ્યાસ તું,
કવિઓમાં શુક્રાચાર્ય કવિ તું!.......
દમન કરનારાઓનું દંડ તું,
વિજય ઈચ્છનારાઓની નીતિ તું,
ગુપ્ત ભાવોનું રક્ષણ કરનાર મૌન તું,
જ્ઞાની જનોનું તત્વજ્ઞાન તું!.....
સમસ્ત ભૂતોની ઉત્પતિનું કારણ તું
આખાય એ બ્રહ્માંડને પોતાની
યોગ શક્તિના એક અંશ માત્રથી
ધારણ કરીને સ્થિત છે કેશવ તું!...
(શ્રીમદ્ ભગવત ગીતા:10 મો અધ્યાય)
જય શ્રી કૃષ્ણ:પુષ્પા.એસ.ઠાકોર
Meera Singh
तू ही बता
कैसे तुझे याद किये बिन जीने की आदत डालू
तू तो मेरी साँसें है क्या मैं अपनी सांसो को रोकू।।
मीरा सिंह
Komal Mehta
I’m not the one to blend in with the crowd —
I’m the one who stands out and creates her own space.
I’ve seen life in all its colors —
I’ve been broken, I’ve been tested,
but every time, I came back stronger… and more beautiful than before.
There’s softness in me,
but never weakness.
I don’t need to pull others down to rise —
I just grow, every single day, by becoming the best version of me.
I speak straight from the heart,
and when it comes to self-respect,
even my silence speaks louder than words.
My self-worth is my crown,
and my truth is my strength.
I love with depth,
and walk away with grace.
If someone can’t value my presence,
they don’t deserve access to my energy.
My name is Komal Mehta.
And I live life on my own terms.
No drama. No pretending.
Just elegance, fire, and fearless self-love.
Komal Mehta
में
मैंने चुप रहना सीखा है,
हर बात पर बोलना ज़रूरी नहीं,
कुछ जवाब खामोशी में होते हैं,
जो सिर्फ समझने वालों के लिए होते हैं।
मेरी नर्मी को अगर तू कमजोरी समझे,
तो ये तेरी सोच की हार है,
मैं खामोश ज़रूर रहती हूँ,
पर मेरी दूरी सबसे बड़ी तलवार है।
भीड़ में खो जाना मेरी आदत नहीं,
मैं तो रौशनी से रास्ते बनाती हूँ,
जहाँ लोग थम जाते हैं सोचकर,
मैं वहाँ से भी मुस्कुरा के निकल जाती हूँ।
टूटी हूँ कई बार ज़िन्दगी की ठोकरों से,
पर हर बार कुछ और सीख आई,
कमज़ोर तो मैं कभी नहीं थी,
बस हर दर्द ने मुझे और भी मज़बूत बनाई।
मुझे किसी से बेहतर नहीं बनना,
ना ही किसी से आगे निकलना है,
मुझे तो बस हर दिन खुद से मिलकर,
अपनी सच्चाई और बहादुरी को जीना है।
Ex Muslim Suhana
★.. चैप्टर–03–मुहम्मद एक मानसिक रोगी (a)
नार्सीसिज्म के साथ अक्सर कई विकार पैदा होते हैं । इसी तरह चिकित्सीय भाषा में कहें तो टीएलई से पीड़ित मरीज में सामान्यतः अनेक मनोवैज्ञानिक रोग पाए जाते हैं । इस अध्याय में हम मुहम्मद के मनोविकारों को इस पहलू से जानने का प्रयास करेंगे । इस बात के तमाम संकेत हैं कि मुहम्मद ऑब्सेसिव-कम्पलसिव डिस्ऑर्डर से ग्रस्त था।
ऑम्मेप्तिव-कम्पलपग्तिव डिस्ऑरईर
कनाडा के मानसिक स्वास्थ्य एसोसिएशन के अनुसार, सनक और जिद भरे कई विकार (ऑब्सेसिवकम्पलसिव डिस्ऑर्डर-ओसीडी ) मनुष्यों में मानसिक परेशानी या चिंता पैदा करते हैं। यह चिकित्सीय विकारों का समूह होता है, जो इंसान के विचारों, व्यवहार, भावनाओं और संवेदना पर प्रभाव डालता है।
सामूहिक रूप से ये समस्याएं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में सर्वाधिक पाई जाती हैं| ऐसा अनुमान है कि दस में हर एक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी इस तरह की समस्याओं की चपेट में आता ही है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति के मन में ऊलजुलूल विचार आते हैं और वह उनमें उलझा रहता है । ये विचार उन व्यक्तियों को मजबूरी में उन ऊलजुलूल कार्यों को करने की ओर ले जाता है। कभी-कभी तो दिन में कई घंटों तक वह ऐसे सनक भरे कार्यों को करता रहता है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति का गुमसुम रहना, दुखी रहना, हर बात में शक करना, अंधविश्वासी होना और रुढ़ियों को लेकर लकौर का फकीर होने की समस्या आम है । ये विकार तब होता है जब दुख या संताप लंबे समय तक बना रहे और व्यक्ति रुढ़ियों में इस कदर जकड़ा रहे कि वो उसके सामान्य जीवन पर असर डालने लगे।
ओसीडी तब होता है जब किसी के मन में दुख गहरे बैठ जाए और वह व्यक्ति कुछ खास हरकतों अथवा कर्मकांड के प्रति सनकी की तरह इतना आग्रही हो जाए कि इससे उसका जीवन प्रभावित होने लगे । यह कुछ ऐसा होता है, जैसे कि मान लीजिए मस्तिष्क विनाइल का बना हुआ रिकार्ड है तो जैसे यदि रिकार्ड पर खरोंच लग जाए तो रिकार्ड प्लेयर पर चलाने पर सूई एक जगह बार-बार अटक जाती है और गाने का कोई विशेष भाग बार-बार बजने लगता है।
किसी चीज के प्रति अनावश्यक रूप से आग्रही होने, तर्कहीन व निराधार भावों, विचारों, कल्पनाओं और संवेगों का लगातार बने रहना मनोविकार होता है । सामान्य ओसीडी आदतें अशुद्धता, संदेह और परेशान करने वाली यौनिक अथवा धार्मिक विचार के इर्दगिर्द घूमती हैं। अक्सर किसी व्यक्ति में भय, घृणा और संदेह अथवा कुछ खास गतिविधियों को लेकर ऐसी धारणा पाल लेने के कारण ऐसी सनक चढ़ जाती है कि व्यक्ति इन हरकतों को बार-बार करता है। ओसीडी से ग्रस्त लोग अपनी सनकी गतिविधियों को बारंबार और निश्चित तरीके से करके खुद को हल्का करने की कोशिश करते हैं। ओसीडी से पीड़ित बच्चों को कई और मनोविकारों की चपेट में आने की आशंका होती है। इन बच्चों में बात-बात पर डरने, समाज से दूर भागने की प्रवृत्ति, अवसाद, सीखने में कठिनाई महसूस करना, पेशियों में खिंचाव महसूस करने की समस्या, विघटनकारी व्यवहार और स्वयं को कुरूप मानने (काल्पनिक कुरूपता) जैसी समस्याएं आ सकती हैं |“
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह माना जा सकता है कि मुहम्मद उद्देग संबंधी मनोविकार से भी पीड़ित था। वजू कैसे करना है, कितनी बार नमाज पढ़नी है और किस तरह पढ़नी है, इन बातों को लेकर वह लकीर का फकीर था। उसने इसी के चलते छोटी-छोटी बातों जैसे चेहरा कैसे धोएं, नाक कैसे धोएं, कान व हाथ कैसे धोएं और किस क्रम में ये काम करें आदि के बारे में भी विस्तार से बताया है| हालांकि ये सारी बातें निरर्थक हैं, लेकिन उसके लिए ये बहुत महत्वपूर्ण थीं। मुहम्मद की इन बातों को जानकर यह समझना कठिन नहीं है कि वह ओसीडी से पीड़ित था । ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति प्रतिरूप और संख्याओं को लेकर आग्रही होता है । ऐसे लोग सम संख्या अथवा विषम संख्या, दोनों में से किसी एक को प्राथमिकता देते हैं | मुहम्मद संख्या 3 को लेकर बड़ा आग्रही था। बहुत से ऐसे कर्मकांड हैं, जो मुसलमानों को तीन बार करना आवश्यक होता है। इसके पीछे कोई तार्किक कारण नहीं है, सिवाय इसके कि यह मुहम्मद की सुन्नत पर आधारित है।
मुसलमानों को नमाज पढ़ने से पहले निम्नलिखित चीजें करनी अनिवार्य होती हैं इस इरादे का ऐलान करो कि यह कार्य इबादत के मकसद से है।
पानी से तीन बार कुल्ला करो।
नाक के दोनों छिद्रों में तीन बार पानी डालकर साफ करो।
चेहरे को तीन बार धोओ।
दाहिनी बांह को तीन बार कोहनी तक और फिर बाई बांह को कोहनी तक तीन बार धोओ।
भीगे हाथ से पूरे सिर अथवा इसके किसी भाग को एक बार साफ करो।
तर्जनी उंगली से कान के भीतर के भाग को साफ करो और अंगूठे से बाहरी भाग को। यह भीगी उंगलियों से किया जाना चाहिए।
भीगे हाथों से गले के चारों ओर साफ करो।
दाहिने पांव से शुरू कर दोनों पांव को घुटनों तक तीन बार धोओ।
तीन बार धोने का क्या मतलब है ? सिर, गले या पांव को भीगे हाथों से पोंछने का क्या तर्क है ? पहले दाहिने हाथ को ही क्यों धोएं ? ये सब बेसिरपैर के मजहबी कर्मकांड हैं, जिसका स्वच्छता या आध्यात्मिकता से कोई लेनादेना नहीं है।
कर्मकांड को लेकर मुहम्मद की सनक आगे और स्पष्ट होगी। इन कर्मकांडों को तयम्मुम कहा जाता है। जब पानी उपलब्ध न हो अथवा किसी कारण से पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता हो तो ऐसी स्थिति में तयम्मुम की व्यवस्था की गई । यह निम्न तरीके से किया जाता है:
दोनों हाथों को मिट्टी, बालू या पत्थर से हल्का सा रगड़ो। फिर दोनों हथेलियों को आपस में मिलाओ और फिर चेहरे को उसी तरीके से पोंछो जैसा कि वजू में किया जाता है।
दोनों हथेलियों को फिर रगड़ो और बाएं हाथ से दाहिने हाथ को कुहनी तक और दाहिने हाथ से बाएं हाथ को कुहनी तक पोंछो। ये नियम बेतुके हैं। इसी तरह से नमाज पढ़ते समय किए जाने वाला कियाम (खड़ा होना), सुजूद (सिर को जमीन से सटाना), रुकू (झुकना) और जलसा (बैठना) भी बेतुके नियम हैं | इस्लाम ऐसे नियमों से भरा पड़ा है जो प्रतिरूप और संख्या को लेकर मुहम्मद की सनकों को बयान करते हैं और इससे पता चलता है कि वह ओसीडी से ग्रस्त था। नीचे वे कर्मकांड दिए गए हैं, जिन्हें मुहम्मद की सुन्नत माना जाता है और मुसलमानों को इसका पालन पूरी बारीकी से करना होता है । हालांकि इन सबका कोई मतलब नहीं है, लेकिन चूंकि यह मुहम्मद से जुड़ा है, इसलिए इनका पालन न करना मुहम्मद की तौहीन मानी जाती है और ऐसा करना सजा का हकदार बनाता है, जबकि इसका अक्षरश: पालन करने को सबाब मिलने वाला माना जाता है।
फर्श पर बैठना और खाना फ़र्श पर बैठ कर खाना
दाहिने हाथ से खाना खाना जो सामने है, उसे एक किनारे से खाना
खाने से पहले जूते उतारना
खाते समय दोनों घुटनों को जमीन पर रखना अथवा एक घुटना ऊपर अथवा दोनों घुटने ऊपर रखना
खाते समय चुप नहीं रहना चाहिए।
तीन उंगलियों से खाना
बहुत गर्म खाना नहीं खाना।
खाने पर झपट्टा नहीं मारना।
खाने के बाद उंगलियां जरूर चाटना ।
मुसलमान को दायें हाथ से पीना चाहिए। बाएं हाथ से शैतान पीता है।
बैठकर पीना प्रत्येक घूंट को तीन सांस में पीना और फिर गिलास को मुंह से हटाना।
अपना बिस्तर खुद ठीक करना।
बिस्तर पर सोने से पहले तीन बार झटक कर धूल झाड़ना। दाहिनी ओर सोना।
दाहिनी हथेली दाहिने गाल के नीचे रखकर सोना।
सोते समय घुटनों को हल्के से मोड़ना।
काबा की तरफ सिर करके सोना।
सोने से पहले सूरा इखलास, सूरा फलक और सूरा नास तीन बार पढ़ना तथा इसके बाद तीन बार शरीर को झटकना।
जागने पर हथेलियों से चेहरे और आंखों को मलना।
जब भी कोई कपड़ा पहनना होता था तो रसूल्लाह (अल्लाह के पैगम्बर) हमेशा पहले कपड़ा दाहिने अंग से डालते थे।
जब कपड़ा उतारना होता था तो रसूल्लाह हमेशा पहले बाएं अंग से उतारना शुरू करते थे।
पुरुषों को पाजामा टखने के ऊपर पहनना चाहिए। महिलाओं को ध्यान रखना चाहिए कि उनका नीचे का वस्त्र टखने को ढंके।
मर्दों को पगड़ी पहननी चाहिए। औरतों को हमेशा सिर पर स्कार्फ डाले रहना चाहिए।
जूता पहनते समय पहले दायें पैर का जूता पहनना चाहिए और फिर बाएं ।
पहले बाएं पैर का जूता उतारना चाहिए और फिर दाएं।
शौचालय में जाते वक्त सिर ढंका होना चाहिए।
शौचालय में घुसने से पहले दुआ पढ़नी चाहिए।
शौचालय में पहले बायां पैर रखना चाहिए।
पेशाब हमेशा बैठकर करना चाहिए। खड़े होकर पेशाब कभी नहीं करना चाहिए।
शौचालय से बाहर आते समय पहले दाहिना पैर बाहर निकालना चाहिए ।
शौचालय में मुंह मक्का की तरफ नहीं होना चाहिए और न ही पीठ काबा की तरफ होना चाहिए।
शौचालय में बात नहीं करें।
पेशाब करते समय शरीर पर उसके छींटे नहीं पड़ने चाहिए। (इस ओर लापरवाह होने पर कब्र में सजा दी जाती है।)
दातुन (दांत साफ करने के लिए लकड़ी का ब्रश) का प्रयोग रसूल्लाह की बड़ी सुन्नत है ।
वजू करते समय जो दातुन करेगा और इसके बाद नमाज़ पढ़ेगा, उसे 70 गुना अधिक सबाब मिलता है |
जुमा के दिन गुस्ल (स््रान) करना चाहिए।
दाढ़ी रखनी चाहिए, जिसकी लंबाई एक मुट्ठी हो।
जूते बाएं हाथ में लेकर चलना चाहिए।
मस्जिद में पहले दायां पांव रखना चाहिए।
मस्जिद से निकलते समय पहले बायां पैर निकालना चाहिए।
आयशा ने एक जगह कहा है कि मुहम्मद मध्य रात्रि में उठ जाता था और कब्रिस्तान में इबादत करने चला जाता थाः
जब उस दिन अल्लाह के रसूल के साथ रात में सोने की मेरी बारी थी तो उन्होंने करवट बदली और अपना लबादा पहना और जूते उतारकर अपने पैरों के पास रख लिये | इसके बाद अपने शॉल के कोने को अपने बिस्तर पर फैलाया और तब तक पड़े रहे, जब तक कि उन्हें नहीं लगा कि मैं सो गई हूं। फिर धीरे से उन्होंने अपना लबादा उठाया, जूते पहने और दरवाजा खोलकर बाहर निकलकर धीरे से बंद कर दिया। मैंने अपना सिर ढंककर नकाब पहना और नाड़े को कसा, फिर उनके पीछे-पीछे गई । वह बकी (कब्रिस्तान) पहुंचे और वहां ठहरे, फिर काफी देर तक वहां खड़े रहे । इसके बाद उन्होंने अपने हाथ तीन बार उठाए और वापस लौटने लगे तो आयशा भी लौटने लगी। उन्होंने वापसी में अपने कदम तेज कर दिए और आयशा ने भी | वह दौड़ने लगे और मैं भी | वह घर पहुंचे और मैं भी | हालांकि मैं उनसे पहले घर पहुंची और बिस्तर पर सो गई । वह (पाक रसूल) घर के अंदर पहुंचे और कहा, “अरे आयशा, क्या हुआ, तुम हांफ क्यों रही हो ?' मैंने कहा, 'कुछ तो नहीं ।' वो बोले, 'तुम बताओ मुझे, नहीं तो मुझे अंतर्ज्ञान से पता चल ही जाएगा ।' मैंने कहा, ' अल्लाह के रसूल, मेरे पिता और मां आपके पास फिरौती के रूप में हैं। फिर उनको पूरी बात बता दी ।' उन्होंने कहा, ' क्या अंधेरे मुझे जो परछाई दिख रही थी, वह तुम्हारी थी ?' मैंने कहा, 'हां।' उन्होंने मेरी की छाती पर जोर का वार किया, जिससे मैं दर्द से छटपटा गई । उन्होंने कहा, ' तुम्हें क्या लगता है कि अल्लाह और उसके रसूल तुम्हारे साथ जुल्म करेंगे ?' मैंने कहा, "अल्लाह से कुछ नहीं छिपा है, वह सब जानता है ।' उन्होंने कहा, “जब तुमने मुझे देखा तो मेरे पास जिब्राईल आया था। उसी ने मुझे बुलाया था और यह बात वह तुमको जाहिर नहीं होने देना चाहता था। उसने पुकारा था, इसलिए मैं गया था और यह बात मैंने भी तुमसे छिपाई (क्योंकि वह तुम्हारे सामने प्रकट नहीं हुआ), क्योंकि तुम ने ठीक से कपड़े नहीं पहन रखे थे | मुझे लगा कि तुम सो गई हो और यह सोचकर मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था कि तुम डर जाओगी ।' उसने (जिब्राईल ने) कहा, 'अल्लाह का हुक्म है कि कब्रिस्तान में जाओ और उन लोगों के गुनाहों के लिए माफी मांगो, जो वहां दफन हैं ।' मैंने कहा, “अल्लाह के रसूल, मैं उनके लिए दुआ कैसे मांगू (उनके लिए गुनाहों की माफी किस तरह से मांग सकती हूं) ? उन्होंने कहा, 'बोलो, इस कब्रिस्तान में दफन ईमान वाले मुसलमानों को अल्लाह शांति नसीब करे। और जो हमसे पहले चले गए और हमारे बाद जाएंगे, अल्लाह उन पर रहम करे और अल्लाह के फजल से हम सब उसमें शामिल हों /“
वह अल्लाह जरूर कोई पागल होगा जो अपने रसूल को आधी रात को कब्रिस्तान में जाकर मर चुके लोगों के लिए माफी मांगने का हुक्म देता है। क्या वह ऐसे विचित्र समय पर अपने रसूल को परेशान किए बिना उन्हें माफ नहीं कर सकता था? विडम्बना यह है कि मुहम्मद के साथियों ने उसके उन अजीबोगरीब व्यवहारों की गलत व्याख्या करते हुए इसे उसकी नेकनीयती का प्रमाण बताया, जबकि उसके ये व्यवहार साफ तौर पर उसके मनोविकृति (मनोरोग-पागलपन) को इंगित करते हैं।
एक हदीस में मुहम्मद अपने अनुयायियों को चेतावनी देते हुए कहता है कि भीगे हाथ से अपनी एड़ी पोंछकर 'दोजख की आग से खुद को बचाओ 7४ ऐसा नहीं था कि मुहम्मद ऐसा कहकर लोगों को स्वच्छता का संदेश दे रहा था, बल्कि यह उसकी रस्म निभाने (अतार्किक व बेसिरपैर के कर्मकांड) की सनक थी। उसने सोचा कि भीगे हाथ पैरों पर फिराने और यहां तक कि मोजे के ऊपर से फिराने भर से दोजख की आग से बचा जा सकता है । बुखारी में एक हदीस है, जिसमें कहा गया है कि मुहम्मद चमड़े के मोजे पहने होता था तो उसके ऊपर से ही भीगे हाथ से पोंछता था:
अल-मुगैरा बिन सुबा ने बताया: 'एक यात्रा के दौरान मैं अल्लाह के रसूल के साथ था तो वह शौच के लिए गए (और जब शौच कर लिया) तो मैंने पानी गिराया तो उन्होंने मजजन किया अर्थात अपना चेहरा धोया, बाजू धोए और फिर भीगा हाथ अपने सिर पर फिराया, फिर इसके बाद उसी भीगे हाथ से पैर में पहने चमड़े के दोनों मोज़ों को पोंछा ।?*
एक और हदीस में बुखारी हुमरान (उस्मान का गुलाम) का हवाला देते हुए कहता है:
मैंने देखा कि उस्मान बिन अफ्फान ने पानी का एक पीपा मांगा। जब पीपे उनके पास लाया गया तो उन्होंने अपने हाथों में पानी उड़ेला और तीन बार धोया। फिर दाहिना हाथ पीपा में डाला और मुंह में पानी लेकर कुल्ला किया, नाक के भीतर पानी डालकर साफ किया और फिर पानी उलीचकर मुंह धोया, तीन बार कुहनी तक बाहें धोयीं | इसके बाद उसने कहा, ' अल्लाह के रसूल ने कहा है कि यदि कोई मेरी तरह से वजू (मज्जन) करता है और दो वक्त की नमाज अदा करता है, तथा उस दौरान उस वक्त नमाज के अलावा और कुछ नहीं सोचता है तो उसके पुराने गुनाह माफ हो जाएंगे।' मैंने रसूल को कहते सुना था, 'यदि कोई मुकम्मल तरीके से वजू करता है और उसके बाद अनिवार्य सामूहिक रूप से नमाज अदा करता है तो अल्लाह उस नमाज और अगले नमाज के बीच किए गए गुनाहों का माफ कर देता है। और जब तक वह इस तरह नमाज अदा करता रहेगा, उसके गुनाह माफ होते रहेंगे।?*
यह कितना अतार्किक है। केवल ऑबसेस्सिव-कम्पलसिव डिस्आऑर्डर से ग्रस्त इंसान ही ऐसा सोच सकता है कि किसी के गुनाह महज कुछ निश्चित रस्म (रिचुअल्स) निभाने से माफ हो जाएंगे। मनोविकार व्यक्ति द्वारा बारबार दोहराए जाने वाले उन व्यवहारों अथवा मानसिक गतिविधियों से पहचाना जाता है, जो मनुष्य ऐसे नियमों के अनुसार करने को प्रेरित होता है, जिसका पालन कठोरता से किए जाने की बाध्यता हो । मनोविकार की पहचान उन व्यवहारों व मानसिक गतिविधियों द्वारा भी होती है, जिनका उद्देश्य जहन्नुम या इस प्रकार की काल्पनिक विपदा को टालने या कम करने अथवा किसी अनहोनी को रोकना होता है। इस्लाम निरर्थक नियम-कायदे और धार्मिक कर्मकांड से भरा हुआ है। वजू, गुस्ल (नहाना), अनिवार्य नमाज के नियम और हज व रोजा आदि अनिवार्य होना आदि इंगित करता है कि मुहम्मद के ऊपर धार्मिक रस्मों (कर्मकांडों) को लेकर जुनून सवार था। उसने यहां तक कहा कि शौच के बाद खुद को स्वच्छ करने के लिए कितने कंकड़ का प्रयोग किया जाना चाहिए। (उसके मुताबिक शौच के बाद स्वच्छ करने के लिए कंकड़ों की संख्या विषम होनी चाहिए। चार कंकड़ प्रयोग करने के बजाय तीन कंकड़ अधिक स्वच्छ करते हैं।)
एक हदीस में मुहम्मद कहता है, 'जब तुममें से कोई पेशाब करे तो उसे तीन बार अपने उस अंग से पेशाब निकालकर खाली करना चाहिए।' ईरान के अयातुल्ला ने फरमान दिया है कि लिंग को तीन बार झटक देने के बाद यह साफ हो जाता है और इसके बाद यदि पेशाब की बूंदें कपड़े पर गिर भी जाएं तो उस व्यक्ति की नमाज खारिज नहीं होती है।
Ex Muslim Suhana
surgical strike of Islam 👹
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vedika
जो आज है वही सच है...
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